________________
पति के पोरे विगाल मेना ने गुफा में प्रवेश किया।
धना गन्धकार उस गुफा में घा । गरम हवा का अब भी कुछ प्रभाव था। दुर्गन्ध और सुगन्ध को मिली जुली गवा रही थी। चनारत्न के प्रभाव से गुफा में प्रकाश हो उठा था जिसके आधार पर ही भरत महाराज आगे वटते जा रहे थे।
गम का पना अधकार चीरते हुए भरत अपनी विशाल सेना के साथ आगे व.ते ही जा रहे थे। तभी गुफा के अन्त भाग मे दूर प्रकाश दिनाई दिया । सूर्य चद्रमा दिखाई देने लगे। शीतल हवा का स्पर्श भी हुा । प्रसन्नता की लहर सब के चहरो पर छा गइ । योजतो लम्बी चोडी भयकर गुफा का प्रत निकट पा रहा था। ज्यो ज्यो आगे बटने जाते त्यो त्यो प्रकाश विशेष दृष्टिगत होता जाता।
जय भरत ! जय भरत ।। जय भरत ।।। का नारा पुन गूज उठा । मोए हुए और जग जग फर दहाडने लगे। विजय भेरी बजी जा रही थी कि तभी "
'ठहरो।'
भयकर गर्जना भरी एक आवाज ने मवको चौंका दिया। कोन हो सकता है ? किसने ठहरने के लिये ललकारा है ? आदि तरह-२ की कल्पना की जाने लगी। किंतु भरत महाराज रुके नहीं, अपितु आगे बढ़ते ही जा रहे थे। जैसे उन्होने कुछ सुना ही नहीं। तभी एक व्यक्ति, जो अपरिचित था सामने आया और कहने लगा__'कोन हो पाप ? कहां जा रहे हो? यह सेना साथ मे क्यो है? इस गुफा में प्रवेश करने का माहस तुम्हे मिला कहाँ से ?" एक * साथ अनेक वाते वह पूछ बैठा ।
सेनापति भागे लाया और उत्तर देने लगा-हम अयोध्या से पा रहे है । यह सारी मेना भरत महाराज की है । पूर्व, दक्षिण और पश्चिम दिशानो के देश प्रदेशो पर विजय प्राप्त करते हए नव उत्तर की ओर पाए है ।"ऊपर विशाल सिंहासन पर हाथी पर