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"महत्व पूर्ण गुफा ??" हाँ हा । आप मेरे साथ आगे बढिए ।'
इस प्रकार नम्रता को धारण किये वीर देव आगे हो गया । सेनापति उसके पीछे थे । सेना सेनापति के पीछे थी । व्यन्तर देव पथ दिखाता हुआ जा रहा था। बीहड, घाटियो, वन अरण्यो से भरे इस पर्वत का पथ सत्यत दुर्गम था । भयकर और विशाल घना था। ____विजयार्घ पर्वत के उस पार जाने के लिये प्रयास किया जा रहा था तभी देव ने बताया
"ठहरिए मेनापति जी। "क्ष्यो?
"यही वह गुफा का द्वार है, जिसको आप चक्ररत्न की सहायता से खोलने का प्रयास करेंगे।
"किन्तु इत्त गुफा का द्वार खोल देने से क्या मिलेगा।
"यही तो वह द्वार है जिसके अन्दर प्रवेश करके आप इस विशाल पर्वत के उस पार जा सकेगे।
"अरे 111 .. .. सेनापति आश्चर्य से देखता ही रह गया। सेनापति अपने हाथी पर से उतरा और उतावली से चला, जैसे क्षण भर मे ही द्वार को खोल देगा।
"अरे रे रे । हरिये ।" देव ने बीच में ही रोका। "क्यो ? मुझे क्यो रोक रहे हो । द्वार खोलना है ना।
अवश्य खोलना है। पर आपको यह नी ज्ञात होना चाहिये यहां पहले भी हजारो योद्धा या चुके हैं और सब ने अपना शौर्य प्राट पाया है पर किसी को भी सफलता नहीं मिली। मुंह की खाकर वापिस हो साहिर उनको जाना पड़ा था।
च्या यह इतना मयार है? जी हां।