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________________ (२) ॐ नमोऽर्हते स्वाहा । ( यहाँ पुष्पाञ्जलि क्षेपण करना चाहिए ) ____अडिल्ल छन्द। प्रथमदेव अरहंत, सुश्रुतसिद्धांत जू । गुरुनिरेग्रन्थमहंत मुकतिपुरपंथे जू ।। तीन रतन जगमांहि, सु ये भवि ध्याइये । तिनकी भक्तिप्रसाद, परमपद पाइये ॥ १॥ दोहा। पूजों पद अरहंतके, पूजों गुरुपद सार । पूजो देवी सरस्वती, नितँप्रति अष्टप्रकार ॥२॥ ॐ ह्रीं देवशास्त्रगुरुसमूह । अत्र अवतर अवतर । सवौषट् । ॐ ह्रीं देवशास्त्रगुरुसमूह । अत्र तिष्ठ तिष्ठ । ठः ठः । ॐ ह्रीं देवशास्त्रगुरुसमूह । अत्र मम सन्निहितो भव भव । वषट् । गीताछन्द। सुरपति उर्रगनरनाथ तिनकर, वन्दनीक सुपदप्रभा । अति शोभनीक सुवरण उज्जल, देख छवि मोहत सभा ॥ __वर नीर छीरसमुद्र घर्ट भरि, अंग्र तमु बहुविधि नचूँ । __ अरहंत श्रुत सिद्धांत गुरु, निरग्रंथ नित पूजा रचूँ ॥१॥ दोहा। मलिनवस्तु हर लेत सब, जलस्वभाव-मल-छीन । जासों पूजो परमपद, देव शास्त्र गुरु तीन ॥ १ ॥ ॐ हीं देवशास्त्रगुरुभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल नि० स्वा० । १ परिग्रह रहित । २ मोक्षनगरीका रास्ता। ३ सदा-हररोज | ४ आठ तरह .५ इन्द्र । धरणेन्द्र । ७ उत्तम । ८ क्षीरसागरका । ९ घड़ा । १० आगे।
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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