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________________ नीमरा भाग १ सम्यग्दर्शन धर्मरूपी पेड़की जड है अथवा धर्मरूपी घरको नींव है। सबसे पहले इसे धारण करना चाहिये। इसके बिना सब धर्म कर्म निष्फल हैं। उनसे कुछ अधिक लाभ नहीं होना है। सम्यग्दर्शनकी बड़ी महिमा है। जिन जीवको सम्यग्दर्शन होगया है वह मरकर उत्तम देव या मनुष्य ही होता है. खियाम पदा नहीं होता, नरक भी जाय तो पहले नकसे नीचे नहीं जाता। मम्यान पदार्थके स्वरूपको ठीक जमाका नैमा जानना और उनमें किसी प्रकारका सन्देह या संशय नहीं करना, इसका नाम सम्यग्ज्ञान है। सम्यग्दर्शनके होनेसे पहले जो ज्ञान होता है उसे कुज्ञान कहते हैं। वही ज्ञान सम्यग्दशन होनेपर सम्यग्ज्ञान कहलाता है। सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञानका कारण है। विना सच्ची श्रद्धाके सम्यग्ज्ञान नहीं हो सकता। ____ सम्यग्ज्ञानसे ही आत्मज्ञान और केवलज्ञान होता है । इसलिये सम्यग्ज्ञानको शास्त्र स्वा-याय, पड़ने पढ़ाने, सुनने सुनाने, तथा बारबार विचारनेसे प्राप्त करना चाहिये । ____ ज्ञानकी बडी महिमा है। ज्ञान होनेसे थोड़ीसी जिंदगीमें भव भक्के पाप कटते हैं जो अज्ञानी जीव है उनके करोड़ों जन्मकी मेहनतसे भी नहीं कटते।
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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