SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नोमग माग (स्थान) दे, अर्थात यह वह पढाध है, जिसमें सर चीजें रहती हैं। इसके दो भेद है-१-लोकाकाश, २-अशोकाकाश । लोकाकाशमे जीय, अजीत्र, पदल, धर्म, अधर्म वगैरह पर चीज पाई जाती है, परन्तु अन्नो काकाशमें केवन, आकाश ही __ आकाश है, और कुछ नहीं । ५-काल उसे कहते है, जो बीजॉकी हालनाके बदलनेमें मदद देता है । व्यवहारमं पन्न, बड़ी, पहर, दिन, गमाह (हफ्ता), पक्ष (पन्द्रहवाहा), माम. वप वगेरहको काल, कहते है। प्रश्नावली ! १-कौन कौन द्रव्य लोको पाये जाने हैं। क्या भोका ___ भी काई द्रव्य है? २-आकाशके कितने मन हैं ? नान मदिन बनाओ। जहा हम बैठे हुए हैं. वहांपर आकाश क्रय है नहीं ? ३...उन द्रव्यों के नाम बनाया जिनमें चेतना पाई जाती है। 2- यदि धर्म य न हो. नो क्या हम चल, मकते हैं ! ५.---अजीवके कितने भेद है और उनमें से कौन सर्वत्र पाया ‘जाता है ? ६-क्या यह जरूरी है कि छहों द्रव्य एक स्थान पर हों ? दोई ऐसा स्थान भी है, जहा केवल एक या दो द्रव्य ही हो । ७.-पंचास्तिकायका नाम बताओ। ८-अन्धेरा, चादनी शन, दूध. भूप, छाया, वायु कौनसे ...अणु और कन्चमें क्या भंद है ? .
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy