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२] नालगोभ जैन धर्म । मम ममारंभ आरम, मन बच तन कीने प्रारंभ । कुन कारित मोदन करिके, क्रोधादि चतुष्टय धरिके ।। ४ ।। शत आर्ट जु इन भेदन, अर्घ कीने परछेदनेत ।। तिनकी कहूँ कोलो' कहानी, तुम जानत केलजानी ॥५॥ विपरीत एकांत विनयके, मंशग अनान कुनैयके । उम होय घोर अब कीने, वर्चत नहिं जात कहीने ॥६॥ कुगुरुनकी सेवा कीनी, केवल अदया कर भीनी । या विधि मिथ्यात बढायो, चहुँ गतिमें दोष उपायो ॥ ७ ॥ हिंसा पुनि झूठ जु चोरी, पम्वनिता मों द्वेग जोरी। आरंभ परिग्रह भीने, पैन गए जु याविधि कीने ।। ८ ।। सपस रमना घाननको, ₹ग कान विषय सेवनको। बहु काम किये मनमाने, कछ न्याय अन्याय न जाने ॥ ९ ॥ फल पंच उधर खाये, मधु मांस मद्य चित चाये। नहिं अॅर्ट मूलगुण धारे, सेये कुविसी दुखकारे ॥१०॥
१-किसी काम करनेका गदा करना, २-किसी कानके कग्नेका मामान इकठा करना, ३-किसी कामका शुम्भ करना, ४-खुर करना, ५-दूसरेसे कराना, ६-दूमरेको करता देवकर खुश हाना, ७-कार, मान, माया, लोभ, ८-एकमौ आठ, ९-पाप, १०-दूसरेको दुःख देनेसे, ११-कब तक, १२-विपरीत, एकान्त, विनय, सशय और अनान ये जांच मिथ्यात्व होते है, इनका स्वरूप अगली पुस्तकोंमें दिया जायगा । १३पचनसे, १४-दयाका न होना, १५-भी हुई, १६-फिर, १७-परले से, १८-अखि ल्हाना, १९-पांच, २०-इम प्रकार, २१- स्पा २२-खि, २३-योग्य, २४-अयोग्य, २५-पीपल, बड, गूलर, कठूमर, (अजोर )
और पाकर, २६-शहद, २७-शराष, २८-आठ, २९-चे गुण जिनके ---विना श्रावक नहीं हो मकता, ३०-व्यसन-दुर्गुण, जुआ खेलना, मांस
* ना, शराब पीना, परस्त्रीसेवन, वेस्यासेवन, शिकार खेलना, चोरी करना ।