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________________ (६६) नीच गोत्र उसे कहते हैं जिसके उदयसे जीव लोकनिंदित अर्थात् नीच कुलमें पैदा हो । अन्तराय कर्म। __ अन्तराय कर्मके ५ भेद हैं:-१ दानअंतराय, २ लामअंतराय, ३ भोगअंतराय, ४ उपभोगअंतराय, ५ वीर्यअंतराय । दानअंतरायकर्म उसे कहते हैं जिसके उदयसे यह जीव दान न दे सके। लाभअंतरायकर्म उसे कहते हैं जिसके उदयसे लाभ न हो सके। ___ भोगअंतरायकर्म उसे कहते हैं जिसके उदयसे अच्छे पदार्थोंका भोग न कर सके । उपभोगअंतरायकर्म उसे कहते हैं जिसके उदयसे जेवर कपड़ों वगैरह चीजोंका उपभोग न करे । वीर्यअंतरायकर्म उसे कहते हैं जिसके उदयसे शरीरमें सामर्थ्य यानी बल और ताकत न हो। प्रश्नावली। १ कर्म किसे कहते हैं ? कर्मकी मूल और उत्तरप्रकृतियाँ कितनी हैं ? २ सबसे ज्यादह प्रकृतियाँ किस कर्मकी हैं ? और सबसे कम किसकी ? ३ अवधिज्ञान, अचक्षुदर्शन, सम्यग्दर्शन, संहनन, संस्थान, अगुरुलघु, आहारकशरीर, जुगुप्सा, सम्यक्प्रकृति, प्रचलाप्रचला, विग्रहगति, मतिनान, नोकपाय, अनूपूर्व्य, साधारण, अनादेय, इनसे क्या समझते हो ? ४ सुभग, अस्थिर, नाराचसंहनन, स्वातिसंस्थान, वीर्यअन्तराय, तीर्थकर, अप्रत्याख्यानकषाय, स्त्यानगृद्धि, इन कर्मप्रकृतियोंके उदयसे क्या होता है !
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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