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________________ (३७) (ढ) एक दुष्टा स्त्री सदा अपने कटु शब्दोंसे अपने पिताका जी दुखाती है बताओ वह कौनसा पाप करती है ? (ण) एक जुआरी अपना सब रुपया हार जानेके बाद घर आकर अपनी स्त्रीसे कहने लगा कि यदि तुम्हारे पास कुछ रुपया हो तो दे दो। यद्यपि स्त्रीके पास रुपया था, परन्तु जुवेके कारण उसने कह दिया कि मेरे पास तो एक फूटी कौड़ी भी नहीं, मैं कहाँसे दूँ ? बताओ उसने झूठ बोला या सच ? ४ अतिथिसंविभागवत, अनर्थदण्डव्रत, और परिग्रहपरिमाणाणुव्रतसे क्या समझते हो ? उदाहरण सहित बताओ ? आठवाँ पाठ। ग्यारह प्रतिमा । श्रावकोंके ११ दरजे होते हैं, उन्हें ग्यारह प्रतिमा कहते हैं । श्रावक ऊँचे ऊँचे चढ़ता हुआ एकसे दूसरी, दूसरीसे तीसरी, तीसरीसे चौथी, इसी तरह ग्यारहवीं प्रतिमा तक चढ़ता है और उससे ऊपर चढ़कर साधु या मुनि कहलाता है । अगली अगली प्रतिमाओंमें पहलेकी प्रतिमाओंकी क्रियाका होना भी जरूरी है। दर्शनप्रतिमा-सम्यग्दर्शन सहित अतीचार रहित आठ मूलगुणोंका धारण करना और सात व्यसनोंका अतीचार सहित त्याग करना दर्शनप्रतिमा है। इस प्रतिमाका धारी दार्शनिकश्रावक कहलाता है। वह सदा संसारसे उदासीन दृदचित्त रहता है और मुझे इस शुभ कामका फल मिले ऐसी वांछा नहीं रखता।
SR No.010158
Book TitleBalbodh Jain Dharm Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayachand Goyaliya
PublisherDaya Sudhakar Karyalaya
Publication Year
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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