________________
जैन-ग्रन्थ-संग्रह।
ॐही उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्म! अत्रावतर अवतर!संवीपट् ॐ ही उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्म ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ । ठः ठः। ॐही उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्म ! अत्र मम सन्निहितो भव भव । वपट् ।
सोरठा। हेमाचलकी धार, मुनिचित सम शीतल सुरभ । भवमाताप निवार, दसलक्षन पूजों सदा ॥१॥
ॐही उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय जलं निपामि॥२॥ चंदन केशर गार, होय सुवास दर्शों दिशा । भवआ० ।
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय चंदन निर्वपामि०२॥ अमल अनंडित सार, तंदल चंद्रसमान शुभ ॥ भवा० ॥३॥
ॐ ही उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय अक्षतान निर्वपामि०॥३॥ फूल अनेकप्रकार, महक ऊरघलोक लों। भवा० ॥ ____ॐही उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय पुष्पं निर्वपामि ॥४॥ नेवल विविध प्रकार, उत्तम पटरससंजुउत ॥ भवआ०॥ ५॥
ॐ ही उत्तमक्षमादिदशलक्षधर्माय नैवेद्य' निर्वपामि० ॥५॥ घाति कपूर सुधार, दीपकजोति सुहावनी ॥ भव०॥६॥
ॐ हीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय दीपं निर्वपामि०॥६॥ अगर धूप विस्तार, फैले सर्व सुगंधता ॥ भवा० ॥७॥ ____ॐ हीं उचमक्षमादिदशलक्षणधर्माय धूपं निर्वपामि॥७॥ फलकी जाति अपार, धान नयन मनमोहने । भवआ० ॥८॥
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय फलं निर्वपामि०॥ ८॥ आठों दरव संचार, 'धानत' अधिक उछाहस ॥ भवा०॥६॥
ॐ ह्रीं उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्मायायं निर्वपामि० ॥ ६ ॥