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जैन-अन्य संग्रह।
यो कलेश हिय धार मरणकर, चारों गति मरमायो। सम्यकदर्शन ज्ञान तीन ये, हिरदेमें नईि लायो । अब या अरज कर प्रभु सुनिये, मरणसमय यह मानो रोग जनित पीड़ा मत हाऊ, अरु कंपाय मत जागो ये मुझ सरणसमय दुखदाता, इन हर साता कीजे । जो समाधियुत मरणाहोय मुझ, अरु मिथ्यागद छीजा यह तन सात कुत्रात मई है, देखत ही घिन आवे। चर्म लपेटी ऊपर सोहै, भीतर विष्टा पावे ॥ . अति दुर्गंध अपाचन सो यह, मूरख प्रीति बढ़ाने । . देह बिनाशी यह अविनाशी, नित्यत्वरूप कहावे या यह तन जीर्ण. कुटीसम मेरो, यात प्रीति न कीजे । नूतन महल मिले फिर हमको, यामें क्या मुझ छीजे ॥ मृत्यु होनले हानिकौन है, याको भय मत लागे। समता से जो देह वजोगे, तो शुभ तन तुम पावो nal मृत्यु मित्र उपकारी तेरो. इस अवसर के माहीं। जीरण तनसे देत नयो यह, या सम साऊ नाहीं॥ या सेतो तुम मृत्युसमय नर, उत्सव अतिही कीजै। क्लेशसावको त्याग सयाने, समताभाव घरीजै ॥ १०॥ जो तुम पूरव पुण्य किये हैं, तिनको फल सुखदाई । मृत्युमित्र दिन कौन दिखाचे, स्वर्ग सम्पदा भाई ॥ राग द्वेषको छोड़ सयाने, सात व्यसन दुखदाई।
अन्त समय में समता धारो, पर भव पन्य सहाई ॥११॥ . कर्म महा दुठ वैरी मेरो तासेती दुख पावे ! . तन पिंजरे में बंध कियो मुझ, जालों कौन छुड़ावे ।
भूख तृषा दुख आदि अनेकन, इस हो तनमें गाड़े। . . मृत्युराज अब आप दयाकर तन पिंजर से काढ़ेस