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________________ सम्यक ज्ञान ६७६ उसका अर्थ-बोध, श्रुताभ्यास यानी शस्त्र का पठन-पाठन करने से होता है । शास्त्र के पठन-पाठन के लिए हमारे यहाँ स्वाध्याय शब्द प्रचलित है । स्वाध्याय साधु और श्रावक दोनो को अपनी भूमिकानुसार करना होता है । कार्यसिद्धि के लिए काल भी एक महत्त्वपूर्ण कारण माना जाता है, यानी कि अमुक कार्य अमुक समय करने से ही सिद्धि प्राप्त होती है । यह नियम स्वाध्याय में भी लागू है, यानी कि, स्वाध्याय भी अमुक समय ही करना चाहिए | प्रातःकाल, मध्याह्न, सध्या और मध्यरात्रि की दो घड़ी, एक सधि समय से पहले को और एक सधि समय के बाद की, स्वाध्याय के लिए निषिद्ध हैं । उनके विषय में शास्त्र में कहा है कि, 'पहली और पिछली संध्या के समय, मध्याह्न और अर्धरात्रि के समय इन चार सध्याओ के समय - जो मनुष्य स्वाध्याय करता है, वह आजादिक की विराधना करता है।' f लौकिक शास्त्रों में कहा है कि - -- चत्वारि खलु कर्माणि, सन्ध्याकाले विवर्जयेत । श्रहारं मैथुनं निद्रा, स्वाध्याये च विशेषतेः ॥ - सध्या समय चार कमों का त्याग करना चाहिए । आहार, मैथुन, निद्रा और विशेषतः स्वाध्याय । कारण कि, सध्याकाल में आहार करने से व्याधि उत्पन्न होती है, मैथुन करने से दुष्ट गर्भ उत्पन्न होता है, निद्रा करने से धन का नाश होता है, और स्वाध्याय करने से मरण होता है । इस मान्यता में चाहे जितना तथ्य हो, पर एक बात सच है कि, प्रातःकाल सायंकाल आदि सध्या समय स्वाध्याय करने का काम न रहने से आवश्यक आदि क्रियाओं के लिए आवश्यक समय मिल जाता है । ज्ञान देनेवाले का, गुण का, ज्ञानी का, ज्ञानाभ्यासी का, ज्ञान का और
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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