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________________ ६७० आत्मतत्व-विचार कितने लोग कहते हैं-"मैं चित्त अथवा मन के एकाग्र करने का प्रयास तो करता हूँ, पर वह एकाग्र होता नहीं। आप कोई ऐसा उपाय घतायें जिससे मन जल्दी एकाग्र हो जाये।" इसका उत्तर यह है कि, मन को शान्त तथा एकाग्र करने के मुख्य उपाय वैराग्य तथा अभ्यास है। आप भी इनका आलम्बन लीजिए । आपके अन्तर मे अनेक प्रकार की आशाएँ और तृष्णाएँ भरी हुई है । इसलिए आपका चित्त सदा व्याकुल रहता है। अगर आप आशाओं और तृष्णाओं की शृखला काट डालें, तो आपका मन इधर-उधर न भटके और शात हो जाये । और, तब आसानी से वह एकाग्र रहने लगे। दूसरी चीन अभ्यास है। आप रोज सामायिक करें और उसका अभ्यास बढ़ाते जायें, तो आपका मन जल्दी शान्त हो जाये; फिर उसके एकाग्र करने में जरा भी कठिनाई न हो। __मैं आपको नित्य धर्मोपदेश देता हूँ और संसार की असारता समझाता हूँ, वह इसीलिए कि, आपका मन वैराग्य के रंग में रेंग नाये और आप शाति का अनुभव करने लगें । लेकिन, जिनका मन संसार के भोग-विलासों - मे लिपटा हुआ है; उन्हे शाति का अनुभव नहीं होता। आप प्रभु-पूजा करते हैं, माला फेरते है, एव दूसरी क्रियाएँ करते है, परन्तु चित्त की स्थिति डावॉडोल होने से वह तन्मय नहीं होता और इस कारण उसका समुचित फल प्राप्त नहीं होता। इतना प्रसगोचित ! अब प्रस्तुत विषय की विचारणा करें । सम्यग्दर्शन-सम्यक्त्व-आत्मा का गुण है। ज्ञान भी आत्मा का गुण है । अपेक्षा विशेष से कहें तो वह आत्मा का प्रधान गुण है; कारण कि, उसी के द्वारा वह जड़ से पृथक ,प्रतीत होता है। एक जैन-महर्षि ज्ञान की महिमा प्रकाशते हुए कहते हैं गुण अनंत आतम तणारे, मुख्यपणे तिहां दोय। - तेमा पण ज्ञान ज वर्ल्ड रे, जिन थी दंसण होय । .
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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