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________________ गुणस्थान ४८३ छठे और सातवें गुणस्थान मे धर्मध्यान अच्छी तरह सिद्ध हो जाने के बाद, इस गुणस्थान के जीव शुक्ल ध्यान का आरम्भ करते है और उसकी पहली मजिल पार करते हैं। यहाँ यह याद रखना चाहिए कि, यह ध्यान चऋषभनाराच संघननवाले को ही हो सकता है। शुक्ल ध्यान का सम्बन्ध आगे के गुणस्थानो के साथ भी है; इसलिए यहाँ उसका सामान्य परिचय दिया जाता है। शुक्ल ध्यान के चार प्रकार शुक्ल ध्यान यानी उज्ज्वल ध्यान ! इसमें आत्मा की उज्ज्वलता विशेष रूप से प्रकट होती है। इसके चार प्रकार हैं : (१) पृथकत्व-वितर्क सविचार, (२) एकत्ववितर्क निर्विचार, (३) सूक्ष्म क्रियाऽप्रतिपाती और (४) समुच्छिन्न-क्रियाऽनिवृत्ति । (ये नाम मुश्किल लगते है, पर अगर ध्यान में दिलचस्पी हो तो ये आसानी से याद रह सकते हैं।) इन नामो को सुनकर एक श्रोता ने कहा-"ये नाम तो बड़े कठिन हैं।" पर, यह तो रस और अभ्यास का विषय है। यदि आप इस विषय में रस लें और अभ्यास करें तो नाम स्वतः सरलता से स्मरण हो जायेंगे । आप शेयरों का व्यापार करते हैं तो कम्पनियों के लम्बे लम्बे नाम तो स्मरण रखते ही हैं। इसका कारण यही है कि, उसमे आप रस लेते हैं। कपड़े का व्यवसाय करते हैं तो कपड़ों के अटपटे नाम आप स्मरण रखते ही हैं। इसका भी कारण वस्तुतः यही है कि, कपड़े में रस लेने से और नित्य प्रति अभ्यास करने से वे नाम आपको स्मरण हो जाते है। शुक्ल ध्यान की पहली मजिल या पहला प्रकार है-पृथकत्व-वितर्कसविचार । पृथकत्व माने भिन्नता, वितर्क माने श्रुतज्ञान, और विचार का अर्थ है एक अर्थ से दूसरे अर्थ पर, एक शब्द से दूसरे शब्द पर और एक (मानसिक आदि ) योग से दूसरे योग पर चिन्तनाथ होनेवाली
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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