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________________ ३६२ प्रात्मतत्व-विचार उत्तर-शास्त्र-सिद्धान्त का ज्ञान अगर सभ्यक्त्वपूर्वक हो, तो वह सम्यक्नान है; अन्यथा मिथ्याज्ञान है । जैसे सॉप को पिलाया हुआ दूध वित्ररूप हो जाता है, उसी प्रकार मिथ्यात्वी को दिया हुआ शास्त्र-सिद्धान्त का ज्ञान भी उसके लिए मिथ्यात्व ही बन जाता है । चारित्र लेकर, शास्त्रसिद्धान्त का अभ्यास करके और आचायपद प्राप्त करके भी आत्मा अभव्य हो सकती है । अगारमर्दकसूरि की कथा से बात स्पष्ट हो जायेगी। अगारमकसूरि का प्रबन्ध श्री विजयसेनसूरि अपने विशाल शिष्य-समुदाय के साथ क्षितिप्रतिष्ठित नगर में विराजमान थे । उस समय एक शिष्य को एक रात में स्वप्न आया कि 'पाँच सौ सुन्दर हाथी चले आ रहे हैं और उनका नायक भू ड है। . कुछ स्वप्न भावी घटना के सूचक होते हैं और उनसे निश्चित अर्थ निकलता है । ऐसे स्वप्नों को देव या गुरु के सम्मुख अथवा गाय के कान मे कहने चाहिए। सुबह हुई। शिष्य ने वह स्वप्न विनयपूर्वक गुरु को बताया और उसका अर्थ पूछा। गुरु ज्ञानी थे और अष्टागनिमित्त के अच्छे जानकार थे। उन्होंने सब शिष्यों को सुनाते हुए कहा-"आन यहाँ पाच सौ सुविहित साधुओं के साथ एक अभव्य आचार्य आयेगा।" उसी दिन पाँच सौ शिष्यों के साथ रुद्राचार्य उस नगर में आये । उनकी ज्ञानगर्भित मधुर देशना सुनने के लिए हजारों नागरिक उमड़ पड़े। शिष्यों ने सोचा-"ये साधु सुविहित हैं और आचार्य अभव्य है यह कैसे जाना जाये ?"-उन्होंने यह बात गुरु से पूछी । गुरु ने कहा"मैं तुम्हारी शका का निवारण करूँगा।" बाद में उनके लघुशका करने के स्थान पर छोटे-छोटे अगारे विछवा दिये गये और आगे क्या होता है इस पर नजर रखी गयी। रात्रि के दो प्रहर व्यतीत हो गये। तीसरे प्रहर के शुरू होने पर
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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