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________________ कर्मवन्ध और उसके कारणों पर विचार ३८६ से कुछ नमकीन पिस्ते बादाम देने के लिए कहा । नौकर ने हुक्म की तामील कर दी। उसने वे वादाम-पिस्ते शौक मे खाये। लेकिन, थोड़ी ही देर बाट उसे बेचैनी मालूम होने लगी और वह धीरे-धीरे बढती गयी । जब माता पिता घर में वापस आये तब तक उसकी हालत बहुत बिगड़ चुकी थी। उन्होंने नौकर से पूछा- "हमारे जाते समय तो इसे कोई शिकायत थी नहीं । एकाएक यह क्या हो गया ? क्या इसने कोई चीज खायी है ?" नौकर ने सारी बात कह सुनायी । वे समझ गये कि, यह तो बड़ा अनर्थ हुश्रा । अब क्या करें ? वे दौड़ कर उसी सन्यासी के पास गये और अपने घर बुला लाये । सन्यासी ने लड़के की हालत देखते ही कहा-"इसके पेट में नमक गया है। मैं लाचार हूँ। अब इसका कुछ उपाय नहीं हो सकता। मैंने सिद्धरसायन खिला कर इसकी जान बचायी थी । नमक का त्याग उसकी शर्त थी। पर, वह गतं. किसी प्रकार तोड़ डाली गयी है, इसलिए इसकी ऐसी हालत हो गयी है। अब आप लोग चाहें तो इसे रामनाम सुना दें, कारण कि यह अब सिर्फ आधे घटे का मेहमान है।" ___ इन शब्दों के सुनते ही घर में भयकर रुदन मचने लगा और आधे घटे में लड़का मर गया । ____ यह कुछ वर्ष पहले घटित सच्ची घटना है। इससे आपको मानवस्वभाव का परिचय मिलता है । जब असातावेदनीय का उदय होता है, तो मनुष्य फिर दुष्कर्म न करने का निर्णय करता है, लेकिन ज्योंही सातावेदनीय का उदय हुआ कि, सन्त्र निर्णय धरे रह जाते हैं और वह अपनी पुरानी चाल पर चलने लगता है। उस समय वह यह विचार नहीं करता कि, वह कितना कर्मबन्ध कर रहा है और उसका क्या परिणाम होगा।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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