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________________ आत्मतत्व-विचार उन्होंने उद्यान के सिरे पर ध्यानावस्थित प्रसन्नचन्द्र राजपि को देखा || सुमुख बोला - " देखा इन मुनिवर को ? कैसा उग्र ध्यान धर रहे हैं। बिरले ही ऐसी उग्र तपस्या कर सकते हैं । बारबार धन्यवाद है, इनको ।” ३४२ यह सुनकर दुर्मुख ने कहा - "हाँ, देखा इन मुनिवर को । इन्हें मैं बराबर पहचानता हॅू । ये है, पोतनपुर के राजा प्रसन्नचन्द्र ! इन्होने अपने दूध पीते बालक पर राज्य का भार डाल कर यह रास्ता लिया है । लेकिन, इनके पीछे राज्य की क्या हालत हो रही है उसकी इनको क्या खबर जिन मंत्रियो को इन्होने कार्य भार सौंपा था, उनकी नीयत बिगड़ गयी है और वे लोग राज्य को हथियाने के अनेक पड्यंत्र कर रहे हैं । इनके अन्तःपुर की सब रानियाँ इसी कारण नाश को प्राप्त है और बाल - राजा उनके शिकजे में आ गया है, आजकल में ही उस बेचारे का कचूमर निकल जायेगा । जो पिता अपने पुत्र के हित में बेदरकार रहे, उसे मैं, अधर्मी और पापी समझता हूँ और उसे हजार बार धिक्कारता हूँ ।" इस तरह बातें करते हुए वे वहाँ से निकल गये । कुछ देर में श्रेणिक राजा वहाँ आये और ध्यान-मग्न सुनिवर को वन्दन किया । फिर वे प्रभु महावीर के समीप पहुँच कर उनको धर्मदेशना सुनने लगे। वहाँ अवसर , देखकर उन्होंने पूछा - "हे प्रभो । मैंने रास्ते मे ध्यान-मग्न प्रसन्नचन्द्र राजर्षि की वन्दना की । अगर वे उस स्थिति मे गति में जाते ?" प्रभु ने कहा - " सातवें नरक में ---- कालधर्म पाते तो किस ।" यह जवाब सुनकर श्रेणिक राजा विचार में पड गये । मुनि को नरकगमन नहीं हो सकता और यह मुनि तो ध्यानमग्न हैं; फिर भी प्रभु ने ऐसा कैसे कहा ? मेरे सुनने में तो गलती नहीं हो गयी ? शायद ऐसा ही हो, इसलिए उन्होंने फिर प्रश्न किया - "हे प्रभो । प्रसन्नचन्द्र राजि यदि अभी काल धर्म पायें तो किस गति में जायेगे ?" प्रभु ने कहा"वे सर्वार्थसिद्धि - विमान मे देव बनेंगे !"
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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