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________________ आत्मतत्व-विचार महारान ने एक हिरनी का शिकार किया था । हिरनी गर्भवती थी। राजा श्रेणिक के बाण से दोनो के प्राण चले गये। राजा श्रेणिक ने विचार किया-"मैं कैसा पराक्रमी हूँ । कैसा बलवान हूँ कि एक ही बाण से दोनों को बींध डाला !” ऐसे तीव्र अध्यवसाय से उन्हे कर्म का निकाचित-बन्ध हुआ और नरक में जाना ही पड़ा। _अनिकाचित कर्मबन्ध में शुभ अध्यवसायो द्वारा परिवर्तन हो सकता है; पर निकाचित कर्मबन्ध में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता । इसीलिए ज्ञानीजन ऐसा कर्मबन्ध न करने के लिए बारंबार चेतावनी देते हैं। विशेष फिर कहा जायगा । *****
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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