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________________ कर्म को शक्ति २६५ महाबलवान् भरत चक्रवर्ती अपने भाई बाहुबली से द्वन्द्व-युद्ध मे हार गये । इसे भी कर्मप्रभाव के सिवा क्या कहे ? श्रीकृष्ण वासुदेव थे। वह अपूर्व ऋद्धि-सिद्धि के स्वामी थे और विलक्षण शक्तिशाली थे । धातकी-खड की अपरकका नगरी से द्रौपदी को वापस लाते समय वे ६२॥ योजन पटवाली गंगा नदी को भुजाओ से तैर गये । परन्तु, अन्तिम दिनो मे द्वारका में आग लगी, उनका सारा परिवार और सगे-सम्बन्धी उसमे नाश को प्राप्त हुए। माता-पिता को उस सर्वनाश से बचा लेने का उन्होने भगीरथ प्रयत्न किया, फिर भी सफल नहीं हुए। वसुदेव और देवकी दरवाजे की शिला के गिरने से मृत्यु को प्राप्त हुए । सिर्फ वे और उनके बडे भाई बलभद्र बचे। वहाँ से जगल में जाते हुए, बड़ी प्यास लगी । बलभद्र पानी लेने गये और इधर जराकुमार के बाण से -उनकी जान गयी । यह कर्मगति नहीं तो क्या है ? . चिलातीपुत्र का चमत्कारिक चरित्र चिलातीपुत्र का चरित्र सुनिये । इसमें आपको कर्म का अद्भुत् चमत्कार दिखायी देगा। पुण्य, शुभ कर्म का प्रबल उदय होने पर ही मनुष्य भव मिलता है। उसमें भी विशेष पुण्यशाली का जन्म आर्यदेश में और उच्चकुल में होता है । चिलातीपुत्र का जन्म मगध-देश की राजधानी राजगृही म हुआ था, परन्तु उच्चकुल मे नहीं हुआ था। वह धनदत्त सेट की चिलाती-नामक एक गरीब दासी के पेट से जन्मा था। __ एक का जन्म होने पर, बारह प्रकार के बाजे बनें और मिठाइयाँ बेटे और दूसरे के जन्म-समय कॉसे की थाली भी न बजे और गुड़ की कंकरी भी न बॅटे, इसे भी कर्म का चमत्कार मानना ही होगा। अमीर ऐश भोगता है, गरीब कष्ट में रहता है, इसलिए कुल-कुटुम्ब का असर मनुष्य के जीवन पर बहुत गहरा पड़ता है। इसे भी कर्म का ही प्रभाव माना गया है।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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