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________________ २६४ अात्मतत्व-विचार लगेगा, पर जरा सा मच्छर हाथी के कान में घुस जाये, तो उससे तोबा बुलवा दे । एक जरा-सी चिनगारी घास के ढेर को भस्म कर देती है। वह ब्राह्मण बदला लेने के इरादा लेकर वहाँ से लौटा। जब वह ब्राह्मण एक जगल मे होकर जा रहा था, तब उसने एक भरवाड़ को गुलेल से पीपल के पत्तो में छेद करते हुए देखा । ब्राह्मण ने उसके पास जाकर मोहरो का ढेर रख दिया । भरवाड बोला-'मेरे लायक कोई कामकाज हो तो बतलाइए।" ब्राह्मण ने कहा-"तुम्हारे लिए यह काम है कि मैं तुम्हे जो आदमी बताऊँ उसकी दोनो ऑखें गुलेल से फोड दो!" भरवाड ने स्वीकार कर लिया । ब्राह्मण भरवाड को लेकर कापिल्यपुर आया, जोकि ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की राजधानी थी । वहाँ ब्राह्मण ने ब्रह्मदत्त को बताया और भरवाड़ ने एक बार मौका देखकर गुलेल से निशाने लगाकर ब्रह्मदत्त की दोनो आँखे फोड़ कर उसे अन्धा कर दिया । अंत में भरवाड पकड़ा गया । उसने सारी बात बता दी। राजा की माज्ञा से नित्य एक थाल भर ब्राह्मणों की ऑखे निकाल कर राना के सामने पेश की जाती । राजा उन्हे स्पर्श कर तृप्ति का अनुभव करता । ऐसा १६ वर्षों तक चलता रहा । और, मरकर ब्रह्मदत्त ७-वे नरक में गया । ___ सचमुच, किये हुए कर्म किसी को छोड़ते नहीं। किसी कवि ने ठीक ही कहा है कि: आकाशमुत्पततु गच्छतु वा दिगन्तमम्मोनिधि विशतु तिष्ठतु वा यथेष्ठम् । जन्मान्तरार्जितशुभाशुभ कृन्नराणां, छायेव न त्यजति कर्म फलानुवन्धि ॥ —'आप आकाश में उड जायें, दिशाओ के परली पार चले जायें, सागर की तली मे जाकर बैठ जायें या जहाँ चाहें वहाँ पहुँच जाये, लेकिन जन्मान्तर में जो शुभाशुभ कर्म किये होगे वे आपकी छाया की तरह आपके साथ रहेगे। वे अपना फल अवश्य देंगे।'
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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