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आत्मज्ञान कब होता है ?
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जो जीव और अजीव की, आत्मा और अनात्मा की, पृथकता भलीभाँति जानते है, जो यह जानते हैं कि मैं आत्मा हूँ, देह नहीं हॅू, इन्द्रिय नहीं हूँ; प्राण नहीं हूँ; मन नहीं हूँ, और नो इसका सतत भान रखकर आत्मकल्याण की प्रवृत्ति में निरन्तर लगे रहते हैं, उन्हें ही सच्चा ज्ञान हुआ समझो । जिन्हें ऐसा ज्ञान हुआ होगा वे पुद्गल-पोषण की वृत्ति कदापि नहीं रखेंगे, विषय-विप के निकट नहीं जायेगे और कपाय-सर्प से सदा दूर रहेगे ।
आपको आत्मा - अनात्मा का भेट विस्तारपूर्वक बतलाया । उसका निरन्तर मनन करते रहेंगे तो देह-बुद्धि नष्ट हो जायेगी और आप अपने को सर्वत्र सर्वशक्तिमान आत्मा मानने लगेंगे। जब यह विश्वास आप मे दृढ हो जायेगा, तब कल्याण आपके कान मे धीरे मे कहेगा- "मैं आपके पास आ गया हूँ ।"