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________________ १८६ श्रात्मतत्व-विचार ऐसा ही एक किस्सा बड़ौदा में हुआ । गायकवाड़ - सरकार को विद्या के प्रति बड़ा प्रेम था । वे विभिन्न विद्वानों को आमंत्रित करते और अपने लक्ष्मीविलास महल में राजकुटुम्ब आदि के समक्ष उनके भाषण कराते। एक बार एक विद्वान को अहिंसा पर भाषण करने के लिए बुलाया गया । उस विद्वान ने अहिंसा पर बडा ही सुन्दर भाषण किया और मास, मछली, अडे आदि खाने के महादोषों का भव्य निदर्शन किया । उन दिनो गरमी के दिन थे और भाषण बड़े जोर से चल रहा था, इसलिए विद्वान वक्ता को पसीना छूट रहा था। उसे पोछने के लिए उसने जेब से रूमाल निकाला । उसी वक्त जेब का एक अंडा रूमाल के साथ बाहर निकल आया और जमीन पर गिरकर फूट गया । उस भाषण को सुनकर तो सबको ऐसा लगा था कि, भविष्य में इन चीनों का सेवन न किया जाये, लेकिन वक्ता की जेब के अडे ने बाहर निकल कर सारा रंग पलट दिया । गभीरता की जगह हास्य की लहर दौड गयी । विद्वान वक्ता को वहाँ से जाते हुए वडी शर्मिन्दगी उठानी पडी | तात्पर्य यह कि कोई बात समझ में आवे पर अमल में न आवे, तो ऐसे ज्ञान से कुछ कल्याण नहीं होता । जो ज्ञान की बड़ी-बड़ी बाते करते है, पर पाप को छोड़कर पुण्य की वृद्धि नहीं करते, उनका ज्ञान किस काम का १ शास्त्रकार ऐसे ज्ञान को सच्चा ज्ञान नहीं कहते । जिसमे वस्तु के हेय उपादेय अगो के यथार्थ ज्ञान के साथ तथाविव निवृत्ति और प्रवृत्ति हो, उसे तत्त्वसंवेदनज्ञान कहते है । महापुरुषों में यह ज्ञान होता है, इसलिए वे जैसा जानते है वैसा कहते हैं और जैसा कहते हैं वैसा ही करते हैं। दिल में और, जबान पर और ऐसा व्यवहार उनमें नहीं होता। ऐसा ही सच्चा ज्ञान है और उसी से कल्याण हो सकता है ।
SR No.010156
Book TitleAtmatattva Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmansuri
PublisherAtma Kamal Labdhisuri Gyanmandir
Publication Year1963
Total Pages819
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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