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श्रात्मज्ञान कच होता है ?
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स्वर्ग जायेगा और दो नरक में जायेगे ।" स्वर्ग में जानेवाला नारद था और नरक में जानेवाले वसु और पर्वत थे । क्षीरकदम्ब जाग रहे थे । उन्होंने मुनिवाणी सुनी, सुनकर बडा आघात लगा | वे विचार करने लगे" अगर मेरे पास रहनेवाले नरक जाये तो मुझे धिक्कार है !" उन्हे अपनी शिक्षण-शक्ति से श्रद्धा उठ गयी और उन्होने ससार का त्याग कर दिया, जबकि आज के शिक्षक घमडी बने फिरते हैं और मिथ्याज्ञान देते हैं । नीति, सदाचार तथा सुसंस्कारों का भी समुचित पोषण नहीं करते । ऐसे शिक्षणो को पैसा देकर अपने बालकों का भविष्य क्यों खतरे मे डालते है ?
अगर अपने बालको का कल्याण चाहते हों तो बचपन से ही उनको त्यागी गुरु महाराज का सग कराइये। वे उनको जो ज्ञान एव संस्कार देंगे वह यह किराये के शिक्षक कदापि नहीं दे सकते । लड़कों के एक बार बिगड़ जाने के बाद शोर मचाना व्यर्थ होगा । इसलिए, चतुराई इसी मे है कि जो करना हो पहले से ही सोच समझ कर करें ।
आपको भीति है कि अगर बालको को त्यागी गुरुओं का संग करायेगे, उनके पास ज्यादा जाने देंगे, तो वे वैरागी-त्यागी बन जायेंगे और हमारे काम के नहीं रहेंगे । परन्तु, दुर्लभ मनुष्यभव पाकर वे अज्ञानी बने रहे, अनाचार का सेवन करते रहें औद परिग्रह में मूर्छित रहकर दुर्गति के भागी बन जाये इसकी आपको कुछ फिक्र नहीं ? वैराग्य और त्याग अच्छी चीन है या खराब ? अगर अच्छी है तो फिर अपने बालको को त्यागियों दूर क्यों रखना चाहते हैं ?
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आपमें बचपन से धर्म के संस्कार पड़े, बड़े होकर आप उनका महत्त्व समझ गये | अब आप नियमित देव-दर्शन और सेवा-पूजा करते हैं । गुरु महाराज की व्याख्यान वाणी सुनते हैं और व्रत नियमो की यथाशक्ति आराधना करते हैं । लेकिन, जो बचपन में कोई धर्म सस्कार नहीं पायेंगे उनकी क्या दशा होगी ?
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