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श्रात्मतत्व-विचार
बड़ा लगता है, इसलिए यह तो पेड़ का टूट ही है ।" फिर आप बाट रखते हैं-"मैने पेड़ का हूँठ ही देखा ।" इस तरह आपको यहाँ अवग्रह, ईहा, अवाय, और धारणा की स्पष्ट जानकारी दे दी गयी।
दो प्रकार के अवग्रह, (व्यजनावग्रह और अर्थावग्रह ) ईहा, अवाय और धारणा-इन पॉच को पॉच इन्द्रियों और छटे मन से गुणे तो ३० की सख्या आती है, पर इसमें चक्षु और मन का व्यंजनावग्रह नहीं होता, इसलिए मतिजान के कुल २८ भेट माने जाते हैं। ये भेद जानप्राप्ति के क्रम के लिहाज से माने गये है। लेकिन, मति अर्थात् बुद्धि के प्रकार देखे तो चार हैं-(१) औत्पत्तिकी, (२) वैनेयिकी, (३) कार्मिकी और (४) पारिणामिकी। जो बुद्धि सूत्र, गुरु या बड़ो की मदद के बिना जन्मातरीय सस्कारो के क्षयोपशम की तीव्रता के कारण वस्तु के यथार्थ मम को ग्रहण कर सकती है और उसके योग्य उपाय नियोजित कर सकती है, वह औत्पत्तिकी-बुद्धि है। जो बुद्धि गुरु और शास्त्र का विनय करने से प्रकट हो वह वैनेयिकी-बुद्धि है। जो बुद्धि कर्म यानी सतत अभ्यास से उत्पन्न हो वह कार्मिकी-बुद्धि है, और जो बुद्धि. अनुभव से प्रकट हुई हो वह पारिणामिकी बुद्धि है।
__ औत्पत्तिकी-बुद्धि । गॉव का एक किसान की गाड़ी मे ककड़ी भर कर पास के शहर में बेचने गया। वहाँ एक चालाक आदमी ने आकर कहा-"अगर कोई आदमी इस गाड़ी की तमाम ककड़ियो को खा जाये तो क्या देगा ” यह भी कहीं हो सकता है, ऐसा मान कर किसान ने कहा-"अगर कोई यह कर देगा तो उसे इतना बड़ा लडडू दूं जो कि शहर के दरवाजे से बाहर न निकल सके।"
चालाक आदमी ने यह गर्त मजूर कर ली और उसकी गाडी की सब ककडियाँ जरा-जरा चख ली। फिर, वह किसान उन ककड़ियों
आदमी इसकता है, ऐसा भड जा