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________________ तृतीय अध्याय (३) योगीन्दु मुनि अपने अन्त:प्रकाश से सहस्त्रों के तमपूर्ण जीवन में ज्योति की शिखा प्रज्वलित करने वाले अनेक भारतीय साधकों, विचारकों और सन्तों का जीवन आज भी तिमिराच्छन्न है। ये साधक अपने सम्बन्ध में कुछ कहना सम्भवतः अपने स्वभाव और परिपाटी के विरुद्ध समझते थे। इसीलिए अपने कार्यो और चरित्रों को अधिकाधिक गुप्त रखने का प्रयास करते थे। यही कारण है कि आज हम उन मनीषियों के जीवन के सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक और विस्तृत तथ्य जानने से वंचित रह जाते हैं और उन तक पहुंचने के लिए परोक्ष मार्गों का सहारा लेते हैं, कल्पना की उड़ानें भरने हैं और अनुमान की बातें करते हैं। नामकरण: श्री योगीन्दु देव भी एक ऐसे साधक और कवि हो गए हैं, जिनके विषय में प्रामाणिक तथ्यों का अभाव है। यहाँ तक कि उनके नामकरण-काल-निर्णय और ग्रंथों के सम्बन्ध में काफी मतभेद है। परमात्मप्रकाश में उनका नाम 'जोइन्दु" पाया है। ब्रह्मदेव ने ‘परमात्मप्रकाश' की टीका में प्रापको सर्वत्र 'योगीन्द' लिखा है। श्रतसागर ने 'योगीन्द्रदेव नाम्ना भट्टारकेण' कहा है। परमात्म प्रकाश की कुछ हस्तलिखित प्रतियों में योगेन्द्र' शब्द का प्रयोग हुआ है। 'योगसार' के अन्तिम दोहे में 'जोगिचन्द' नाम आया है। मुझे 'योगसार' की दो हस्तलिखित प्रतियाँ जयपुर के शास्त्र भांडारों में देखने को मिली। एक प्रति (गुटका नं० ५४) आमेर शास्त्र भांडार में और दूसरी 'ठोलियों के मंदिर के शास्त्र भांडार' में सुरक्षित है। इस प्रति का लिपिकाल सं० १८२७ हैं-'सं० १८२७ मिति काती वदी १३ लिखी।' ठोलियों के मंदिर वाली प्रति के अन्त में लिखा है.-'इति योगेन्द देव कृत-प्राकृत दोहा के आत्मोपदेश सम्पूर्ण ।' उक्त प्रति का अंतिम दोहा इस प्रकार है : 'संसारह भयभीतएण जोगचन्द मुणिएण । अप्पा संवोहण कया दोहा कव्वु मिणेण ।।१८।। श्री ए. एन० उपाध्ये द्वारा सम्पादित योगसार के दोहा नं० १०८ से यह थोड़ा भिन्न है। इसके प्रथम चरण में भयभीयएण' के स्थान पर 'भय भीतएण' १. भावि पण विवि पंच गुरु सिरि जोइन्दु जिणाउ । भट्टपहायरि विणणविउ विमलु करेविणु भाउ ॥८॥ २. देखिए-परमात्मप्रकाश, पृ० १, ५, ३४६ आदि । ३. वही, पृ० ५७ । ४. परमात्म प्रकारा और योगसार, पृ० ३६४ ।
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
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