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अपभ्रंश और हिन्दी में जैन - रहस्यवाद
ग्रन्थ :
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श्री कुन्दकुन्दाचार्य जैन परम्परा में पाँच नामों से विख्यात रहे हैं । tees की टीका में टीकाकार श्रुतसागर ने प्रत्येक पाहुड़ के अन्त में इनके पांच नाम दिये हैं श्री पद्मनंदिकुन्दकुन्दाचार्य वक्रग्रीवाचार्यैलाचार्य गृद्धपृच्छाचार्य नाम पंचक विराजितेन ।' आपके जन्म और जीवन के समान आपके ग्रंथों की संख्या के सम्बन्ध में भी मतभेद है । कुछ ग्रंथ तो परवर्ती लेखकों द्वारा लिखे गये और कुंदकुंद के नाम से प्रचलित किये गये । उनके लिखे ये ग्रन्थ बताये जाने हैं :
(१) चौरासी पाहुड - 'पाहुड' या प्राभृत लिखने की परम्परा कुंदकुंद में ही प्रारम्भ होती है और अनेक जैन विद्वानों द्वारा 'पाहुड' लिखे जाते हैं । 'पाहुड' शब्द 'प्राभृत' का अपभ्रंश है । 'गोम्मटसार जीवकांड' की ३४१वीं गाथा में इस शब्द का अर्थ 'अधिकार' बतलाया गया है- 'अहियारो पाहुडयं । उसी ग्रन्थ में समस्त श्रुतज्ञान को 'पाहुड' कहा गया है। डा० हीरालाल जैन ने इसी आधार पर 'पाहुड' का अर्थ 'धार्मिक सिद्धांत संग्रह' किया है । हमारे विचार से 'पाहुड' शब्द का तात्पर्य केवल धार्मिक सिद्धांत संग्रह' ही नहीं है, अपितु यह शब्द किसी विषय पर लिखे गये विशेष लेख, काव्य या प्रकरण का बोधक रहा है । कुंदकुंदाचार्य के जो 'चौरामी पाहुड' बताये जाते हैं, वे भी जीवन की विभिन्न समस्याओं से सम्बद्ध रहे होंगे। 'चौरासी पाहुड' अब उपलब्ध नहीं हैं, केवल 'अष्टपाहुड' नामक एक ग्रन्थ मिलता है। इसमें जो 'आठ पाहुड' हैं, वह दर्शन, चरित्र, सूत्र, बोध, भाव, मोक्ष, लिंग और शील आदि पर लिखे गये भिन्न-भिन्न प्रकरण ही है।
( २ ) रयणसार - १६२ श्लोकों के इस ग्रन्थ में गृहस्थ तथा भिक्षुओं के धर्म का वर्णन है ।
(३) वारस अणुवेक्खा - इसमें ९९ गाथाएँ हैं । इसमें जैनधर्म की बारह भावनाओं का विवरण है।
( ४ ) नियमसार - इसमें दर्शन, ज्ञान, चरित्र के महत्व पर प्रकाश डाला गया है ।
(५) पंचास्तिकाय - इसमें जीव-तत्व और अजीव-तत्व का वर्णन है ।
( ६ ) समयसार - कुन्दकुन्दाचार्य का सर्वोत्तम दार्शनिक ग्रन्थ है । इसमें कवि की प्रतिभा का पूर्ण विकसित रूप दिखाई पड़ता है ।
( ७ ) प्रवचनसार - यह भी एक दर्शन सम्बन्धी ग्रन्थ है |
१. मुनि रामसिंह दोहा को भूमिका, प० १३ ।