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अपभ्रंश और हिन्दी में जैन-रहस्यवाद लोभों का संवरण किए हुए जनता को अध्यात्म की पीयूष वर्षा से रस-स्नात कर रहे थे। इस प्रकार वे हिन्दी साहित्य को एकांगी बनने से भी बचा रहे थे। खेद है कि उत्तर मध्य युग के एक पक्ष के पूरक ये महाकवि हिन्दी के इतिहासलेखकों द्वारा विस्मृत कर दिए गए।
(७) बनारसीदास, भैया भगवतीदास, संत आनन्दघन और रूपचन्द हिन्दी के उच्च कोटि के कवि हुए हैं। इनमें से बनारसीदास को हिन्दी का प्रथम आत्म-चरित लेखक और प्रौढ़ गद्य लेखक (ब्रजभाषा में ) होने का भी गौरव प्राप्त है। हिन्दी साहित्य का इतिहास इन कवियों और तथ्यों को ध्यान में रखते हुए पुनः लिखा जाना चाहिए।
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