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नवम अध्याय
जैन काव्य और नाथ योगी सम्प्रदाय
योग का अर्थ :
सामान्यतः 'योग' शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में किया जाता है। सुष्ठु ढंग से किए गए कार्य को योग कहते हैं-'योगः कर्मसु कौशलम्', सुख दुःख
आदि पर विजय प्राप्त करना भी 'योग' है-'समत्वं योग उच्यते', चित्त वृत्ति के निरोध को भी 'योग' कहा गया है-'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः', मारण, मोहन
और उच्चाटन आदि मन्त्रों को भी 'योग' कहते हैं और गणित में अंकों का मिलन 'योग' कहलाता ही है। इसी प्रकार 'योग' के अन्य अर्थ भी खोजे जा सकते हैं। किन्तु 'योग' शब्द जब दर्शन-शास्त्र में प्रयुक्त होता है, तब वह एक विशिष्ट अर्थ में ही नियोजित हो जाता है अर्थात् 'योग' शब्द का अपने विशिष्ट रूप में अर्थ है-वह साधना प्रणाली जिससे आत्मा और परमात्मा में ऐक्य स्थापित किया जा सके। डा० रामकुमार वर्मा ने इस तथ्य को इन शब्दों में कहा है'प्रात्मा जिस शारीरिक या मानसिक साधन से परमात्मा में जुड़ जावे, वही योग है।"
१. कबीर का रहस्यवाद, पृ० ६८ ।