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चतुर्थखण्ड
अष्टम अध्याय
जैन काव्य और सिद्ध साहित्य
बौद्ध धर्म का विकास - महायान :
गौतम बुद्ध के निर्वाण के कुछ समय पश्चात् ही उनके अनुयाइयों में सैद्धान्तिक और साधनात्मक विषयों को लेकर मतभेद प्रारम्भ हो गया था । परिणामतः बौद्ध धर्म दलों में विभक्त होने लगा। कुछ ही दिनों में हीनयान और महायान नामक दो सम्प्रदाय अस्तित्व में आ गये । प्रथम मत के अनुयायी व्यक्तिगत साधना और निर्वाण के प्रयत्न पर जोर देते थे और दूसरे सम्प्रदाय के आचार्य सभी प्राणियों के उद्धार की बात करते थे । फलस्वरूप महायान ने काफी लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करना प्रारम्भ कर दिया और इस सम्प्रदाय में विभिन्न वर्गों, वर्णों और व्यवसायों के व्यक्ति दीक्षित होने लगे । महायान का अस्तित्व ईसा की प्रथम शताब्दी के लगभग माना जाता है। 'कथावत्थ' की 'अठकथा' के आधार पर महायानियों का सम्बन्ध वैपुल्य या वैतुल्यवादियों से भी जोड़ा जाता है। राहुल सांकृत्यायन ने लिखा है कि 'प्रज्ञापारमिता, रत्नकूट, वैपुल्य आदि सूत्र महायान के हैं, इसमें तो किसी को सन्देह हो ही नहीं सकता और इसी से वैपुल्यवाद (पाली-वैतुल्लवाद ) वही है जिसे हम आजकल महायान कहते हैं।' वैपुल्यवादियों के कुछ सिद्धान्त जैसे ( १ ) गौतम बुद्ध ने कभी इस
१. पुरातत्व निबन्धावली, पृ० १३१ ।