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"अगर उनकी (जैनों की) रचनाओं के ऊपर से 'जैन" विशेषण हटा दिया जाय तो वे योगियों और तांत्रिकों की रचनाओं से बहुत भिन्न नहीं लगेंगी। वे ही शब्द, वे ही भाव और वे ही प्रयोग धूम फिर कर उस युग के सभी साधकों के
अनुभव में आया करते थे।"
-प्राचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी