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अपभ्रंश और हिन्दी में जैन - रहस्यवाद
कहा है कि आत्मा चार प्रकार के होते हैं— जीवात्मा, शिवात्मा, परमात्मा और निर्मलात्मा । जीवात्मा, शरीर एवं तज्जन्य क्रिया कलापों तक ही सीमित रहता है । शिवात्मा का क्षेत्र पूरा विश्व होता है, परमात्मा विश्व के बाहर भी परिव्याप्त है और निर्मलात्मा वह है जो क्षेत्रीय सीमाओं से परे है, समस्त सांसारिक क्रियाओं और फलों से मुक्त हो चुका है तथा पूर्ण ज्ञान से युक्त है, सम्यक् ज्ञानी है । लेकिन आत्मा के इस भेद का तात्पर्य यह नहीं कि आत्मा चार प्रकार के होते हैं । तत्वतः आत्मा एक है, किन्तु कर्म बंधन और उससे मुक्ति तथा सत्य आदि के ज्ञान के अनुसार चार भेद हो गए हैं। प्रो० रानाडे ने लिखा है कि चार प्रकार के भिन्न भिन्न आत्माओं को मान्यता त्रुटिजन्य है | ! वस्तुत: आत्मा एक है । वातावरण की भिन्नता के कारण चार प्रकार के आत्मा कल्पित किए गए हैं, वैसे आत्मा एक, अद्वितीय और परमानन्दमय है ।'
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आत्मा ही परमात्मा :
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि आत्मा और परमात्मा में कोई तात्विक भेद नहीं है । मूलतः दोनों एक हैं । जो आत्मा है वही सद्गुणों से विभूषित होने पर परमात्मा बन जाता है। योगीन्दु मुनि कहते हैं कि जो ज्ञान स्वरूप एवं अविनाशी परमात्मा है, वही मैं हूं । मैं ही उत्कृष्ट परमात्मा हूँ । इसमें किसी प्रकार का विकल्प अथवा संशय नहीं करना चाहिए :―
जो परमप्पा खाणमउ सो हउ देउ अांतु ।
जो हउं सो परमप्पु परु एहउ भावि भिंतु ।। १७५ ।।
( परमात्मप्रकाश, द्वि० महा० )
जो परमप्पा सो जि हउं जो हउं सो परमप्पु | इठ जाणेविरणु जोइया अणु म करहु वियप्पु ॥ २२ ॥
( योगसार )
श्री पूज्यपाद ने कहा है कि जिस प्रकार आकर से निकला हुआ स्वर्ण- पाषाण शोधन के उपरान्त स्वर्ण माना जाता है, ठीक उसी प्रकार आत्मा शुद्ध होने पर
1. "It is indeed through mistake that people suppose there are four different Atmans. The Atman is really one......... It is on account of the difference of environment that the Atmans are supposed to be different; but the Atman is really one and full of bliss."-S. K Belvalkar and R D. Ranade.—'Mysticism in Maharashtra' page 386. '