________________
पंचम अध्याय
द्रव्य व्यवस्था
मोक्ष का सोपान है सम्यक् ज्ञान । सम्यक् ज्ञान अर्थात् विश्व के रहस्य को जान लेना। द्रव्यों का वास्तविक ज्ञान ही सम्यक् ज्ञान है। विश्व क्या है ? पदार्थ नित्य है या अनित्य ? दृश्यमान जगत का स्वरूप कैसा है ? इन प्रश्नों पर आचार्यों ने विस्तार से विचार किया है और भिन्न-भिन्न सिद्धान्तों और मतवादों को सृष्टि की है । ब्राह्मण धर्म द्रव्य को एक शाश्वत और सत्य मानता है । बौद्ध धर्म द्रव्य को अनेक, अस्थायी और असत्य बताता है। जैन धर्म दोनों के मध्यवर्ती का कार्य करता है। इसके अनुसार द्रव्य सदलक्षणवाला है, उत्पाद, व्यय, धौव्य सहित है अर्थात् गुण और पर्यायों का आश्रय रूप है । द्रव्य का लक्षण सत् है । वह गुण और पर्याय संयुक्त है। गुण नित्य होते हैं और पर्याय अनित्य अर्थात् द्रव्य गुण की दृष्टि से स्थायी रहता है और पर्याय ( अवस्था ) की दृष्टि से उसमें परिवर्तन और विनाश होता रहता है। इसी स्थिरता, परिवर्तन और विनाश को क्रमशः धौव्य, उत्पाद और व्यय कहते हैं। लेकिन द्रव्य को गुण पर्याय से भिन्न नहीं समझना चाहिए। अनन्तकाल से द्रव्य और गुण पर्याय में अभिन्न सम्बन्ध रहा है । द्रव्य के बिना गुण नहीं हो सकते और गुण के बिना द्रव्य । इसी प्रकार पर्याय से रहित द्रव्य या द्रव्य से रहित पर्याय की
१. दव्वं सल्लक्खणिय, उत्पादव्ययवत्तमंत्तं । गुणपज्जायारूवं, वां जं तं भणणंतिसच्वणूहू || १० || (कुन्दकुन्दाचार्य - पंचास्तिकाय )