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अपभ्रंश और हिन्दी में जैन - रहस्यवाद
ऐसे सब सुरे, ज्ञान अंकूरे, आए सन्मुख जेह | पावल मडे, अरिदल खंडे, पुरुषत्वन के गेह || १०५ ||
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रसिंगे बज्जहिं, कोउ न भज्जहिं, करहि महा दोउ जुद्ध | इत जीव हुंकारहि. निज परिवारहि, करहु अरिन को रुद्ध ॥ उत मोह चलावे, तब दल धावे, चेतन पकरो आज । इविवि दोऊदल में, कल नहिं पल, करहिं अनेक इलाज || १६५ ||
जीव अनादिकाल से इन विश्व में भ्रम रहा है । विषय सुख को ही सच्चा सुख मानने के कारण उसे अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है। नाना विपनियों को सहते हुए भी वह ऐन्द्रिक आनन्द का पान करने को लालना में मग्न रहता है और सद्गुरू के उपदेश की भी उपेक्षा करता है । इसे सिद्ध करने के लिए कवि ने एक पौराणिक आख्यान - मधुविन्दुक की चौपाई' – का आश्रय लिया है। आख्यान इस प्रकार है- एक पुरुष बन में मार्ग भूल गया है। वह स्वपथ-प्राप्ति हेतु भटकता फिरता है । बन अतीव भयानक एवं हिंसक जन्तुओं से युक्त है । वह इस आगत विपत्ति से चिन्तित होता है कि कहीं वह वन्य पशु का शिकार न बन जाय । इसी समय वह देखता है कि एक उन्मत्त गज उस पर आक्रमण करने के लिए चला आ रहा है। अतएव वह भयभीत होकर भागता है और एक कुएं में प्राण रक्षा हेतु कूद पड़ता है । कुँए के निकट एक वट वृक्ष लगा है, उसकी शाखाएँ फलवती हैं तथा उसमें मधुमक्खियों का एक छत्ता लगा हुआ है। पुरुष एक शाखा के सहारे कुएं में लटक जाता है। जब उसकी दृष्टि नीचे जाती है तो उसे एक भयंकर ऊर्ध्वमुख अजगर दिखाई पड़ता है। वह अपने चारों ओर भी नाग समूह देखता है । भयग्रस्त हो वह ऊपर देखता है । वहाँ उसे दो चूहे दिखाई पड़ते हैं जो उसी शाखा को काट रहे हैं । उसी समय हाथी भी आकर उस वृक्ष को झकझोरने लगता है । फलतः मक्खियों का समूह उड़कर पुरुष को काटने लगता है | उधर छत्ते से मधु विन्दु भी टपक टपक कर उसके मुख में गिरने लगता है । अतएव वह सभी कष्टों को भूल कर मधु के आस्वादन में निमग्न हो जाता है । दैवयोग से उसी मार्ग से एक विद्याधर-युग्म निकलता है । पुरुष की दयनीय स्थिति को देख कर, वह इसे मुक्त करने के लिए प्रयत्नशील होता है । किन्तु पुरुष गिरते हुए मधु विन्दु के पान की लालसा में वहीं लटकना पसन्द करता है । विद्याधर को निराश होकर लौटना पड़ता है।
कवि अन्त में इस दृष्टान्त को स्पष्ट करता है कि यह संसार महावन है, जिसमें भवभ्रम कूप है। काल गज के रूप में विचरण कर रहा है । वट वृक्ष की शाखा ही आयु है, जिसे रात्रि दिवस रूपी दो चूहे काट रहे हैं । मधु मक्खियाँ शारीरिक रोग हैं, अजगर निगोद है और चार नाग चारों
१. विलास - मधुविन्दुक की चौपाई, पृ० १३५ से १४० तक ।