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अपभ्रंश और हिन्दी में जैन-रहस्यवाद
इतना और ज्ञात होता है कि आप जिस समय काव्य रचना कर रहे थे, उस समय आगरा दिल्ली शासन के अन्तर्गत था, जहाँ औरंगजेब शासन कर रहा था। ऐसा प्रतीत होता है कि कवि ने समय-समय पर स्फुट रचनाएँ किया था और उन्हें सम्बत् १७५५ में स्वयं ही 'ब्रह्म विलास' नाम से संग्रहीत कर दिया था। 'ब्रह्म विलाम' की दो रचनाएँ-द्रव्य संग्रह और अहिक्षितिपार्श्वनाथ स्तुति-सम्वत् १७३१ की हैं और संग्रहकाल सम्वत् १७५५ दिया गया है। इनसे स्पष्ट है कि भैया भगवतीदास का रचनाकाल सम्बत् १७३१ से सम्वत् १७५५ तक रहा।
औरंगजेब ने सम्बत् १७१५ से सं० १७६४ तक शासन किया था। भैया भगवतीदाम इस अवधि में विद्यमान थे। किन्तु वे कब पैदा हए और कब तक जीवित रहे ? इसका कोई निश्चित प्रमाण नहीं मिलता है। ब्रह्म विलास' में एक पद है, जिसमें कवि ने केशवदास की 'रसिक प्रिया' नामक शृङ्गाररस पूर्ण रचना के लिए खेद प्रकट करते हुए कहा है कि रक्त, अस्थि, मांस आदि तत्वों से निमित नारी के शरीर पर रीझकर 'रसिकप्रिया' की रचना करना लज्जा की बात है। पद इस प्रकार है :
१. जम्बूदीप सु भारतवर्ष । तामें आर्य क्षेत्र उत्कर्प ।।
तहां उग्रसेनपुर थान । नगर आगरा नाम प्रधान ॥१॥ नृपति तहां राजै औरंग । जाकी आज्ञा बहे अभंग ।। ईति भीति व्यापै नहि कोय । यह उपकार नृपति को होय ।। तहां जाति उत्तम बहु बसे। त.मे ओसवाल पुनि ल में ।। तिनके गोत बहुत विस्तार । नाम कहत नहि आवै पार ||४|| सबते छोटो गीत प्रसिद्ध । नाम कटारिया रिद्धि समृद्ध ।। दशरथ साहू पुण्य के धनी । तिनके रिद्धि वृद्धि अंत घनी ।।५।। तिनके पुत्र लाल जी भये । धर्मवन्त गुणधर निर्भये ।। तिनके पुत्र भगवतीदाम । जिन यह कीन्हों ब्रह्म विलास ॥६॥
(भैया भगवतीदाम-ब्रह्मविलास, पृ० ३०५) संवत सत्रह में इकतीम, भाघमुद दशमी शुभम ।। मंग-न करमा परम् नबनाम, द्रवसंग्रह प्रति कर प्रणाम ||७|| (पृ०५५)
सत्रह मो इकतीम की, मुदी तशी गुरुवार ।
कार्तिक मास मुद्दावनी, पूने पश्य कुमार ।।७।। (पृ० १०८) ३. मूल चूक निज नयन निहारि । शुद्ध की जियो अर्थ विचारि ॥
मंवत सत्रह पंच पचास । ऋतु वसन्त वैशाख मुमास । ८॥ शुक्ल पक्ष तृतीया रविवार | मंघ चतुर्विध की जयकार || पदत सुनत सबको कल्पान । प्रकट होय निज आतमज्ञान । (पृ० ३०५)