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तनाय अन्याय
के ६९ पद प्राप्त हा हैं। ये पद एक गुटका में गंग्रहीत हैं । गुटका का लेखन काल १० वी गादी है। इनमें से कुछ पद और जयपुर के शास्त्र भांडारों के पद एक ही हैं। अतएव दोनों स्थानों की प्रतियों के आधार पर इनके प्रकाशन को आवश्यकता है। ये पद विभिन्न विषयों में सम्बन्धित हैं। लेकिन अधिकांश पद अध्यात्म सम्बन्धी हैं। कवि को बाह्याइम्बर में विल्कूल विश्वास नहीं था। वह विभिन्न प्रकार के वेषधारी तथाकथित साधुओं का घोर विरोधो था। ये वेपधारी और विभिन्न सम्प्रदायों के जन्मदाता किस प्रकार आत्म-तत्व से अनभिज्ञ रहते हैं, इसको कवि ने निम्नलिखिन पद में स्पष्ट किया है :
औरन सौ रंग न्यारा न्यारा, तुम स रंग करारा है।। तू मन मोहन नाथ हमारा, अब तो प्रीति तुम्हारा है ॥१॥ जोगी हुवा कान फंडाया, मोटी मुद्रा डारी है। गोरख कहै वसना नहीं मारी, धरि धरि तुम ची न्यारी है ।। औरन !! जग मे आवै वाजा बजावै, अाठी तान मिला है। सवका राम सरीखा जान्या, काहे को भेप लजावे है | ३|| औरन । जती हुआ इन्द्री नहीं जीती, पंचभूत नहि मारा है । जीव अजीव को समझा नाहीं भेष लेई करि हाऱ्या है ॥ ४॥ औरन॥ वेद पढ़े अरु वराभन कहावै, वरम दस नहीं पाया है। आत्म तत्व का अरथ न समज्या, पोथी का जनम गुमाया है।॥५॥
||औरना जंगल जावे भरम चड़ावै, जटा व धारी कैसा है। परभव की आसा नहि मारी, फिर जैसा का तैसा है ॥ ६ ॥ औरन ।। काजी किताब को खोलि के बैठे क्या किताब में देख्या है। बकरी की तो दया न आनी, क्या देगा लेखा है।॥ ७॥ औरन॥ जिन कञ्चन का महल बनाया, उनमें पीतल कैसा है। डरे गरे में हार हीरे के, सब जुग का जी कहता है॥८॥ औरन॥ रूपचन्द रंग मगन भया है, नेम निरंजन धारा है।
जनम मरण का डर नहीं वाकु चरना सरन हमारा है।। ।। औरन०॥
रूपचन्द की एक अन्य छोटी रचना 'खटोलना गीत' जयपुर के पामेर शास्त्र भांडार में सुरक्षित है। इसका उल्लेख पं० परमानन्द शास्त्री ने भी अपने एक लेख में किया है। यह १३ पद्यों का एक रूपक काव्य है। रूपक इस प्रकार
१. अगरचन्द नाहटा-राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्यों की खोज
(चतुर्थ भाग) पृ० १४६ । २. छबड़ों का मन्दिर, जयपुर, के गुटका नं०३७ की हस्तलिखित प्रति से। ३. देखिए-अनेकान्त, वर्ष १०, किरण २ (अगस्त १९४६) पृ० ७६ ।