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94 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य, श्रेष्ठ, प्रतिपूर्ण, अद्वितीय, शुद्ध, न्यायसगत, शल्यों का सहार करने वाला, सिद्धि, मुक्ति, नियाण एव निर्वाण का मार्ग है. यथार्थ, शाश्वत, दुखो से मुक्ति का मार्ग है।
इस सर्वज्ञ प्रणीत धर्म के आराधक सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होकर निर्वाण को प्राप्त करते हैं, सब दुखो का अत करते है। लेकिन निदान करने वाले नहीं । अतएव मै तुम्हे निदानLXVII का दुष्फल बतलाता हूँ। यो कहकर प्रभु निदान के बारे मे फरमाते हैं। 1. श्रमण का मानवीय भोग सम्बन्धी निदान :
इस निर्ग्रन्थ प्रवचन की आराधना के लिए अनेक भव्य जीव उपस्थित होकर निर्ग्रन्थ श्रमण एव श्रमणी जीवन को अगीकार करते हैं। सयम जीवन अगीकार करके कदाचित् कोई निर्ग्रन्थ भूख, प्यास, सर्दी, गर्मी आदि परीषहो और उपसर्गो से पीडित होकर कामवासना के प्रबल उदय से ग्रसित हो जाये और उस समय कदाचित् वह विशुद्ध मातृ-पक्षप, पितृ-पक्ष वाले राजकुमार को देखे कि जब वह राजकुमार राजमहल से निकलता है तो उस समय छत्र, झारी, आदि ग्रहण किये हुए अनेक दास, दासी और कई कर्मकार पुरुष उसके आगे-आगे चलते हैं। उसके पीछे-पीछे उत्तम अश्व चलते हैं और दोनो ओर श्रेष्ठ हाथी और उनके पीछे-पीछे श्रेष्ठ सुसज्जित रथ चलते है। अनेक पैदल चलने वाले लोग छत्र, झारी, ताडपत्र का पखा, श्वेत चामर डुलाते हुए उनका अनुगमन करते हैं।
उस राजकुमार का गमनागमन महान ऋद्धि के साथ होता है। अनेक लोग उसकी अत्यन्त भक्ति, सत्कार और सम्मान करते हैं। इसी सत्कार-सम्मान से वह सम्पूर्ण दिन व्यतीत करता है और रात्रि मे भी जब शयन-कक्ष मे जाता है, तब उन्नत, गम्भीर, सुकोमल, दोनो ओर तकिये लगी शय्या सुगधित पदार्थो की सुगध से सुरभित रहती है। विविध प्रकार के मणि-रत्नो की छटा से वह शयन-कक्ष दिन की प्रभा को भी निरस्त करता हुआ ज्योतिपुज बना रहता है। उस शयन-कक्ष मे राजकुमार रूप और शील की साक्षात् देवियो के समकक्ष अपनी प्राण-प्रियाओ के साथ घिरा, हुआ कुशल नर्तको का नृत्य देखता हुआ, मधुर गीतो के कर्णप्रिय शब्दो को श्रवण करता हुआ, अनेक प्रकार के वाद्यो की झकार से मन को झकझोरित करता हुआ एव उत्तम मानुषिक भोगो को भोगता
(क) शल्य-काटा (माया, निदान, मिथ्यादर्शन शल्य) (ख) नियाण-कर्म से छूटने का मार्ग (ग) निर्वाण-मोक्ष, मुक्ति। (घ) मातृ पक्ष-ननिहाल पक्ष (माता का परिवार) (ङ) पितृ पक्ष-ददिहाल पक्ष (पिता का परिवार)