SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 65 वह गोबर का कडा तैरकर ऊपर आ गया। अभयकुमार ने उसे हाथ मे ले लिया और उसमे से मुद्रिका निकाल ली। जैसे ही अभयकुमार ने मुद्रिका निकाली, वैसे ही राज्य कर्मचारियो ने यह सूचना महाराजा श्रेणिक को दी। राजा सूचना प्राप्त करके तुरन्त अभयकुमार के पास आए और उसका अत्यन्त स्नेह से पुत्रवत् आलिंगन किया । समालिगन करने पर उसके प्रति राजा के हृदय में अपार हर्ष उमड पडा । तब राजा निर्निमेष उसका दिव्य दीदार निहारने लगे और पूछा- तुम कहाँ से आए हो? अभयकुमार ने कहा—मै वेणातट से आया हूँ । राजा ने पूछा- उस नगर मे सुभद्र नामक विख्यात सेठ और उसकी पुत्री नदा रहती है । क्या तुम उसे जानते हो? अभयकुमार ने कहा- हाँ । राजा ने पूछा- वह नदा कुछ वर्षो पूर्व सगर्भा थी क्या? तुम्हे पता है उसके क्या हुआ? अभयकुमार ने कहा- उस नदा के अभयकुमार नामक लडका हुआ था । राजा ने पूछा- वह लड़का कैसा है? अभयकुमार ने कहा- राजन् । वह तो आपके सामने खडा है। राजा ने बडे प्रेम से उसे अपनी गोद मे बिठाया ओर पूछा कि तुम्हारी माँ नदा कहाँ है? अभयकुमार ने कहा कि मेरी मॉ नदा इस नगर के बाहर उद्यान मे है । यह सुनकर आनन्दनिमग्न होकर राजा श्रेणिक अभयकुमार को पहले उद्यान मे भेज देता है और बाद मे स्वय नदा महारानी को राजमहल मे लाने के लिए उद्यान मे जाता है । राजा नदा को देखता है और चितन करता है कि विरह मे नदा का शरीर सूखकर कृशकाय हो गया है। मलिन वस्त्र मे लिपटी चन्द्रवदना महारानी शिथिल गात्र वाली, दीन मुख वाली दृष्टिगोचर हो रही है। राजा स्वय उसके पास पहुँचता है और ससम्मान उसे राजमहल मे लाता है । अतीव सत्कार-सम्मान सहित वस्त्राभूषणो से सुसज्जित कर नदा को पटरानी की पदवी देते ह और शुभमुहूर्त में धूमधान से अभयकुमार का अपनी वहिन की पुत्री सुसेना के साथ विवाह कर देते है । तत्पश्चात् अभयकुमार को प्रधानमंत्री का पद देते हैं। अभयकुमार अपनी विलक्षण प्रज्ञा से अनेक दुसाध्य राजाओं को जीतता हुआ, राज्यश्री का उपभोग करता हुआ दुसाध्य समस्याओं का चुटकी में हल निकाल देता है । इस प्रकार अभय की प्रज्ञा से राजगृह नगर की राज्य-व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही है।
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy