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________________ . अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय : 57 - अपनी छोटी-सी कामनापूर्ति के लिए शील की मर्यादा का खण्डन नहीं करूंगा। शीलधर्म की अत्यधिक महत्ता है। शीलधर्म को खोने पर जीवन के समस्त सद्गुण के चले जाते हैं इसलिए ऐसा करना तो दूर रहा पर मैं सुनना भी नहीं चाहता। मैं है तो एकमात्र यही कामना करता हूँ कि तुम कोई ऐसा प्रयत्न करो कि जिससे * तुम पुत्रवती बन जाओ और तुम्हारे से उत्पन्न पुत्र का पालन-पोषण कर मै अपने + अरमानो को पूर्ण कर सकें। सुलसा-स्वामिन् ! मैं अन्य किसी देव की आराधना करने वाली नहीं हूँ। मै तो मात्र अरिहतोपासिका हूँ। केवल जिन-शासन के दो देव-अरिहत और सिद्ध की भक्ति करने वाली हूँ क्योकि उन्हीं की आराधना ही मनोवाछित फलदायी होती है। नाग गाथापति -चाहे किसी की भी आराधना करो, मुझे तो सतान चाहिए, केवल सतान। सुलसा-ठीक है। ऐसा ही उपाय करूँगी। यो कह कर सुलसा आयम्बिल आदि तपश्चर्या करती हुई अपनी आत्मा को भावित करती हई आराधना करने लगी। __ इधर सुलसा की तपश्चर्या का प्रभाव प्रथम देवलोक के इन्द्र शक्रेन्द्र तक भी पड़ा और उन्होने एक बार देवो के समक्ष सुलसा की प्रशसा करते हुए कहा कि भरतक्षेत्र मे सुलसा श्राविका अत्यन्त दृढधर्मी, प्रियधर्मी है। उसको केवली-प्ररूपित धर्म से कोई देव, दानव या मानव भी डिगा नहीं सकते। इन्द्र के मुखारविन्द से सुलसा की प्रशसा श्रवण कर एक देव अत्यन्त विस्मित हुआ और सुलसा की परीक्षा लेने के लिए वह भूमण्डल पर अवतरित हुआ। सुलसा उस समय भगवत्स्मरण कर रही थी। उस देव ने मुनि का रूप बनाया और निस्सही-निस्सही उच्चारण किया। सुलसा ने जैसे ही निस्सही श्रवण किया, वह झट से उठी और देखा, एक साधु सामने खड़े हैं। मुनिराज को देखकर वह अत्यन्त हर्षित हई। उसने मुनि को भाव-सहित वदन किया और पूछा-आपका आगमन किस हेतु हुआ हे? तव उस मुनि रूपधारी देव ने कहा-श्राविके ! मुझे लक्षपाक तेल की आवश्यकता हे और किसी वैद्य ने कहा, वह तुम्हारे घर मिल सकता है। मैं एक रोगी साधु के लिए वह तेल लेने आया हूँ। सुलसा ने कहा-ओह ! आज मेरा परम सौभाग्य है कि मुनि के उपयोग में ma (फ) गाथापति-सदस्थ
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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