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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 49 अत स्पष्ट है कि बौद्धो के चौबीस बुद्ध एव वैदिको के चौबीस अवतारो से जैनो के चौबीस तीर्थंकरो का उल्लेख प्राचीन है । यही कारण है कि चौबीस तीर्थंकरो की जितनी सुव्यवस्थित सामग्री जैनियो मे मिलती है, वैसी बौद्धो या वैदिक वाङ्मय के अवतारो की नहीं मिलती । 110 साथ ही अपश्चिम तीर्थकर भगवान् महावीर ने स्थान-स्थान पर ऐसा उल्लेख भी किया है कि जैसा भगवान् पार्श्वनाथ ने कहा है, वैसा मै भी कहता हूँ ।"" परन्तु बुद्ध ने यह नहीं कहा कि पूर्वबुद्ध 112 ने ऐसा कहा और मै भी ऐसा कहता हॅू। अपितु गौतम बुद्ध ने सर्वत्र यही कहा कि मैं ऐसा कहता हूँ। इससे भी स्पष्ट है कि बुद्ध के पूर्व बौद्ध धर्म की कोई परम्परा नहीं थी जबकि भगवान् महावीर के पूर्व तेईस तीर्थकरो की परम्परा थी। इन तीर्थकर भगवतो की महिमा आगम साहित्य से लेकर आज भी निरन्तर परिलक्षित होती है । चतुर्विशति स्तव ( लोगस्स) मे प्रागइतिहासकारो ने तथा गणधरो "" ने तथा शक्रस्तव (णमोत्थुणं) मे स्वय प्रथम देवलोक के इन्द्र ने तीर्थकर भगवान् के दिव्य गुणो का वर्णन करते हुए उनकी महिमा का बखान किया है । 114 इसके पश्चात् अनेक स्त्रोतो मे तीर्थंकर भगवंतो की महिमा का सुष्ठु दिग्दर्शन उपलब्ध होता है, जिनका आज भी जन-जन मे प्रचलन है। तीर्थंकर भगवान् के नाम के साथ नाथ शब्द कब से जुडा, यह भी उल्लेखनीय है । वैसे नाथ, स्वामी या मालिक प्रभु को कहते हैं। उत्तराध्ययन की वृहद्वृत्ति मे शान्त्याचार्य ने योग, क्षेम के विधाता को नाथ कहा है । 115 अप्राप्त की प्राप्ति योग और प्राप्त वस्तु का रक्षण क्षेम हे । उत्तराध्ययन के अनाथ अध्ययन में स्वय एवं दूसरो का सरक्षण करने वाले को नाथ कहा है। 16 नाथ की ऐसी ही परिभाषा बोद्ध साहित्य मे भी उपलब्ध होती है । दीघनिकाय मे क्षमा, दया, सरलता आदि सद्गुणो को धारण करने वाले को नाथ कहा है। 17 इन सब विश्लेषणो से नाथ शब्द स्वामी, मालिक या प्रभुत्व का सूचनकर्ता हे। सुप्रसिद्ध दिगम्बराचार्य यतिवृषभ ने तिलोयपणत्तिग्रन्थ मे तीर्थकरो के नाम के साथ नाथ शब्द का प्रयोग किया हे यथा 'भरणी रिक्खम्मि से तिणाहो य' । 18 तीर्थकरो के नाम के साथ नाथ शब्द का प्रयोग पचम गणधर सुधर्मा स्वामी ने किया । व्याख्याप्रज्ञप्ति मे लोगनाहेण अर्थात् 'लोक के नाथ कहकर भगवान् को सम्बोधित किया है। शक्रस्तव मे भी लोगनाहेण शब्द मिलता हे इसी का अनुसरण करते हुए तीर्थकर भगवतो के नाम के साथ नाथ या स्वामी शब्द जुड गया और भगवान् महावीर को भी भगवान् महावीर स्वामी कहकर सम्बोधित किया जाने लगा ।
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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