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________________ 46 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय क्षय होने से वे अज्ञानरहित होते हैं। 3 मद-सर्वगुणसम्पन्न भगवान् मदरहित होते हैं। 4 क्रोध-भगवान् क्रोधरहित होते है। 5 माया-अत्यन्त सरल स्वभावी तीर्थंकर भगवान् मायारहित होते हैं। 6 लोभ-तृष्णारहित सतोष-सागर मे रमण करने वाले तीर्थंकर भगवान् होते हैं। 7 रति-इष्ट वस्तु की प्राप्ति से होने वाली खुशी रति कहलाती है। वीतराग भगवान् राग-द्वेष से रहित होने से वे रति-रहित होते हैं। 8 अरति-अनिष्ट वस्तु के सयोग से होने वाली अप्रीति अरति है। अरिहत राग-द्वेष रहित होने से दुखरहित होते है। निद्रा-अरिहतो को दर्शनावरणीय कर्म नहीं होता, अत उन्हे नीद नहीं आती। 10 शोक-मोह विजेता भगवान् शोकरहित होते है। 11 अलीक-तीर्थंकर भगवान् मिथ्याभाषण से रहित होते हैं। 12. चौर्य-मालिक की आज्ञा बिना किसी भी वस्तु को ग्रहण नहीं करते। 13 मत्सरता-तीर्थंकर भगवान् ईर्ष्या भावरहित होते हैं। 14 भय-तीर्थंकर भगवान् अत्यन्त बलशाली होते है। 15 हिसा-दया के सागर तीर्थंकर प्रभु हिसा से रहित होते हैं। 16 प्रेम-तीर्थंकर भगवान् तन, धन, स्वजनादि के प्रेम से रहित होते हैं। 17 क्रीडा-मोह कर्मरहित तीर्थंकर भगवान गाना, बजाना, रोशनी, मण्डप आदि क्रीडाओ से रहित होते हैं। 18 हास्य--सर्वज्ञ प्रभु अपने केवलज्ञान में सभी वस्तुओं को हथेली पर रखे ऑवले की तरह स्पष्ट जानते, देखते हैं। इसलिए वे हास्यरहित होते हैं। भगवान् महावीर चार घाति कर्मो का क्षय करने से बारह गुणधारी बन गये। वे बारह गुण इस प्रकार हैं - 1 अणासवे-आश्रव कर्म-द्वार को कहते हैं। तीर्थंकर भगवान् इस आश्रव से रहित होते हैं। 2. अममे-ममत्व भावरहित होते है। 3 अकिचणे-अकिचन परिपूर्ण साधुता सहित। 4 छिन्नसोए-शोकरहित। 5 निरूवलेवे-ट्रव्य दृष्टि से निर्मल देहधारी तथा भाव दृष्टि से कर्मवध
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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