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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 19 उसने विद्वत् सूचीपत्र मे सर्वप्रथम यज्ञानुष्ठान के आचार्य पद पर नियोजित करने के लिए इन्द्रभूति गौतम का नाम चयन किया और सर्वप्रथम उन्हे ही निमत्रण भेजा। इन्द्रभूति गौतम का जन्म राजगृह नगर के समीपस्थ गोबरxx गॉव मे ई पू 607 मे गौतम गोत्रीय ब्राह्मण परिवार मे हुआ था। ज्येष्ठा नक्षत्र मे जन्मे इन्द्रभूति गौतम के पिता का नाम वसुभूति एव माता का नाम पृथ्वी था। इनके दो सहोदर छोटे भ्राता क्रमश अग्निभूति और वायुभूति थे।
इन तीनो भाइयो ने गुरुकुल मे रहकर वेद-वेदागण और उपाग' का सम्यक् अध्ययन किया और स्वल्प वय मे ही अपनी विनयशीलता एव विलक्षण मेघावी प्रतिभा से विशिष्ट विद्वत्ता को प्राप्त कर लिया। विद्वत्ता प्राप्त करने के पश्चात अनेक बार विद्वद गोष्ठियो मे जाकर अनेक विद्वानो को वाद मे पराजित कर यशोकीर्ति अर्जित की। चहुँ ओर इनकी यशोगाथा प्रसरित होने से अनेक छात्र अध्ययन करने के लिए आने लगे। तीनो भाई अलग-अलग छात्रो को अध्यापन करवाते थे। तीनो भाइयो के पास वर्तमान मे 500-500 छात्र अध्ययनरत थे।"
इसी समय सोमिल ब्राह्मण का निमत्रण मिला कि मध्यम पावा मे वैशाख शुक्ला एकादशी को विराट् यज्ञ मेला करवाना चाहता हूँ। आप अपने शिष्य परिवार सहित पधारे। आपके तत्त्वावधान मे ही यज्ञ करवाना चाहता हूँ। आप पधार कर इस यज्ञ मे आचार्य पद को ग्रहण करे। इन्द्रभूति ने इस निमत्रण को विद्वत्ता की कसौटी मानकर स्वीकार कर लिया । इन्द्रभूति के साथ सोमिल आर्य ने अग्निभूति एव वायुभूति को भी निमत्रण भेजा। उन्होने भी इस निमत्रण पर अपनी स्वीकृति जाहिर कर दी।
इसके पश्चात् सोमिल आर्य ने कोल्लाक सन्निवेश में व्यक्तभूति एव सुधर्मा नामक दो उद्भट विद्वानो, जो 500-500 शिष्यो के आचार्य थे, निमत्रण भेजा। __व्यक्त के पिता का नाम धनदेव एव माता का नाम वारुणी था। ये भारद्वाज गोत्रीय
थे। वेद-वेदाग के प्रखर ज्ञाता, वर्तमान मे 500 शिष्यो को अध्यापन करवा रहे थे। इन्होने सोमिल आर्य के निमत्रण को प्राप्त कर अपनी सहज स्वीकृति प्रदान की। सुधर्मा भी धम्मिल एव भद्दिला के पुत्र अग्निवैश्यायन गोत्रीय थे। विनय की प्रतिमूर्ति सुधर्मा का ज्ञान अतीव निर्मल था और इन्होने भी अपने गुरुकुल मे छात्रो को अध्ययन करवाना प्रारम्भ किया। वर्तमान मे 500 छात्रो को सुन्दर शैली से अध्ययन (क) वेद-ऋगवेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद। (ख) वेदांग-शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद और ज्योतिषा (ग) उपांग-मीमासा, न्याय, धर्म-शास्त्र एव पुराण। (घ) स्वल्प वय-छोटी उम्र। (ड) उद्भट-विशिष्ट।