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268 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय 7. वही, पत्राक 3951 8. आवलिय विमाणाणं तु अन्तरं नियमसो असंखिज्ज। संखिज्जमसंखिज्जं, भणिय पुप्फावकिण्णाण
वृहत्संग्रहणी, वैमानिक निकाय, गाथा 991 9. क. वृहत्सग्रहणी सूत्र, वैमानिक निकाय, गाथा 92-126, पृ. 273-3011 ख. त्रिलोकसार, श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, हिन्दी अनुवाद, प्रका. श्री
शांतिवीर दिगम्बर जैन संस्थान, श्री महावीर जी,प्र.सं. वीर निर्वाण सवत
2501, पृ. 405-191 ग. श्रीमत् भगवती सूत्र, द्वितीयो विभाग, अभयदेव सूरि, आगमोदय समिति,
मुम्बई, सन् 1919, पत्रांक 507। घ. श्री राजप्रश्नीयसूत्र, आ मलयगिरि, आगमोदय समिति, सन् 1925, पत्रांक
59-901 10. क. श्री भगवती सूत्र, द्वितीय विभाग, अभयदेवसूरि, 10,6 वही, पत्रांक 5061
ख. श्रीमत् राजप्रश्नीय सूत्र, आ. मलयगिरि, वही, पत्रांक 59-901 ग वृहत्संग्रहणी, वैमानिकाधिकार, गाथा 96, पृष्ठ 2751 क. भगवती सूत्र, द्वितीय विभाग, अभयदेवसूरि, वही-10, 6, 506-71 ख राजप्रश्नीयसूत्र, युवा श्री मधुकर मुनि, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर,
द्वि.सं. सन् 1991, पृष्ठ 961 12 क जैन तत्त्व प्रकाश, श्री अमलोक ऋषि, प्रका श्री अमोलक जैन ज्ञानालय,
धूले, उन्नीसवां सं. सन् 2005, पृ.6। ख. द्रष्टव्य-प्रश्नो के उत्तर, द्वितीय भाग, श्री ज्ञानमुनि, जैन प्रकाशन समिति,
लुधियाना, प्र.स.,वि.सं. 2021, पृ. 6501 गणधरवाद, लेखक-दलसुख भाई मालवणिया, सम्यक् ज्ञान प्रचारक मण्डल,
जयपुर, पृष्ठ 20। ख. श्रमण भगवान् महावीर, पुरातत्ववेत्ता प कल्याण विजयजी, वही, पृष्ठ ।
481 ग तीर्थकर महावीर, भाग-1, विजयेन्द्र सूरि, पृष्ठ 2561
उप्पन्नमि अणते नटुम्मि अछाउमत्थिए नाणे। राईए संपत्तो महासेण वणम्मि उज्जाणे।।538।। आवश्यकसूत्र, पूर्व भाग, आ मलयगिरि, प्रका. आगमोदय समिति, सन्
1928, पत्रांक-3001 14. उवसग्ग गब्महरणं इत्थीतित्थं अभाविया परिसा।
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