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________________ 12 : अपश्चिम तीर्थकर महावीर, भाग-द्वितीय सुन्दर जीवन्त-से लगने वाले चित्रो को चित्रित किया। तोरण द्वारो का निर्माण होने के पश्चात् तीन परकोटो को बनाने के लिए वैमानिक, ज्योतिष्क एव भवनपति देव अवतरित हुए। वैमानिक देवो ने आभ्यन्तरक परकोटे का निर्माण करना प्रारम्भ किया। विविध प्रकार के रत्नो से उन्होने परकोटा बनाकर, पचरगी मणियो से बड़े ही आकर्षक कगरो को निर्मित किया और कगूरो को बरबस नेत्रो को आकृष्ट करने वाले ध्वजा, पताका और तोरणो से चित्रित कर डाला। मध्य का परकोटा ज्योतिष्क देवो ने अतीव सुन्दर पीली आभा वाले स्वर्ण से बनाया और उस पर रत्नमय कगूरे रत्नजडित स्वर्णहारो की शोभा को विजित करने वाले बनाये। रजतमय बाह्य परकोटे का निर्माण करके उस पर स्वर्णमय कगूरे अपनी विशिष्ट लब्धि, शक्ति व कौशल से भवनपति देवो ने बनाये। सभी कगूरो पर विशिष्ट शिल्पकला को प्रदर्शित करने वाले चित्र, तीन लोक की शोभा का दिग्दर्शन करा रहे थे। अब व्यन्तर देवो ने चतुर्दिक मे अगरु, तुरुष्क और लोबान की सुरभि प्रसरित कर आन्तरिक उल्लास का अनुभव किया। तीन परकोटो का निर्माण होने के पश्चात् आभ्यन्तर परकोटे के बहु-मध्य भाग मे एक भव्य आभा वाले, सघन पत्तो वाले, भगवान् महावीर की अवगाहना से द्वादश गुण" ऊँचाई वाले अशोक वृक्ष की स्थापना स्वय शक्रेन्द्र ने की। उसके नीचे पर्णकों की घनी छाँव मे एक आकर्षक पीठ (चबूतरे) का निर्माण किया। उसके ऊपर एक देवच्छन्दकप और उस पर एक स्फटिक सिहासन को निर्मित किया। तत्पश्चात् ईशान देवलोक के देव सिहासन के ऊपर तीन छत्रो का निर्माण करते है। उस सिहासन के दोनो ओर दो यक्ष दो श्रेष्ठ चॅवरो को बींजते रहते हैं। इन चॅवरो का निर्माण चमरेन्द्र और बलिन्द्रश करते हैं। तत्पश्चात् एक पद्म प्रतिष्ठित धर्म-चक्र को देव स्थापित करते हैं 119 आकर्षक रग से सुसज्जित, इस प्रकार, एक भव्य समवसरण का निर्माण होता है। समवसरण के ये तीनो परकोटे दर्शको को मत्र-मुग्ध बनाने वाले थे। (क) आभ्यन्तर-भीतरी (ख) रजतमय-चॉदी का (ग) द्वादश गुण-वारह गुण (घ) पर्णक-पत्तो (ङ) पीठ-चबूतरा (च) देवच्छन्दक-ऊँची चौकी जैसा (छ) ईशान देवलोक-दृसरा देवलोक (ज) चमरेन्द्र-असुरकुमार भवनपति का दक्षिण दिशा का इन्द्र (झ) वलिन्द्र-असुरकुमार भवनपति का उत्तर दिशा का इन्द्र
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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