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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर, भाग-द्वितीय : 3 मे चार चाँद लगा रहे थे । स्थान-स्थान पर बनी स्वच्छ निर्मल जल की वापिकाऍक चचल लहरो पर जीवन की क्षणिकता का इतिहास उत्टकित कर रही थी । भ्रमरो की गुजार और पक्षियो की चहचहाट वातावरण को कलनाद से व्याप्त कर रही थी । प्रत्येक वनखण्ड मे बना श्रेष्ठ प्रासाद अपनी श्रेष्ठ शिल्प रचना से अनिमेष" नेत्रो से देखने योग्य था । इन्ही प्रासादो मे वनखण्ड के अधिपतिदेव (अशोक देव, सप्तपर्ण देव, चम्पक देव और आम्र देव) निवास करते हैं। इन प्रासादो की शोभा की एक झलक दृष्टिगत करके शक्रेन्द्र के चरण अपने राजभवन की ओर, जहाँ वह प्रशासनिक व्यवस्था करता है, गतिमान बन रहे हैं। वह राजभवन की पद्मवर वेदिका मे प्रविष्ट हुआ जहाँ विविध जाति के कमल छत्राकार रूप छत्रियो के रूप मे खडे मानो मुसलाधार वर्षा से रक्षा करने मे तत्पर हैं। पद्मवर वेदिका के पास प्रासाद के चहुँ ओर घिरा वनखण्ड अपनी परिमल' से वातावरण मे सुगन्ध प्रसरित कर रहा है। इसी वनखण्ड के मध्य मे बना प्रासाद, जिसकी चारो दिशाओ मे चार द्वार और तीन-तीन सीढियाँ है, पर खचित मणियो से चन्दन से भी अधिक सुगन्धित महक प्रसरित हो रही है। इस राजभवन ( उपकारिकालयन) के मध्यातिमध्य भाग मे निर्मित एक प्रासाद-अवतसकछ पाँच सौ योजन चौडा व 250 योजन लम्बा अपनी मनोहर आभा से विहँसता हुआ-सा प्रतीत हो रहा है। इसके ईशान कोण मे सौ योजन लम्बी एव 50 योजन चौडी तथा 72 योजन ऊँची अतीव मनोहर रूप - लावण्य की उत्कृष्ट प्रतिकृति अप्सराओ से व्याप्त सुधर्मा सभा है। इस सुधर्मा सभा की तीन दिशाओ (पूर्व, दक्षिण और उत्तर) मे तीन द्वार श्रेष्ठ स्वर्णशिखरो एव वनमालाओ से अलकृत है। इसमे निर्मित अडतालीस हजार चबूतरे और 48 हजार शय्याऍ अतीव शोभा से सुशोभित है।" इसी सुधर्मा सभा के मध्य श्रेष्ठ सिहासन पर शक्रेन्द्र आकर विराजमान हुआ । देह से शक्रेन्द्र सुधर्मा सभा मे सिहासनस्थ हैं, लेकिन मन वह तो (क) वापिकाएँ - बावड़ियाँ (ख) उकित - उल्लिखित (ग) अनिमेष - लगातार (घ) पद्मवर वेदिका श्रेष्ठ कमलो की बनी वेदिका - परकोटा-सा (ङ) परिमल - सुगध (च) खचित-जटित (छ) पासाद अपन
SR No.010153
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size11 MB
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