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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर
सेनापति, गाथापति, बढ़ई और पुरोहित, इन चार पुरुषरत्नों की अवगाहना (लम्बाई) चक्रवर्ती के बराबर होती है। 48 श्रीदेवी की अवगाहना चक्रवर्ती से चार अंगुल कम होती है। 49 हस्तीरत्न की अवगाहना चक्रवर्ती से दुगुनी होती है ।° अश्व रत्न 108 अंगुल लम्बा और 80 अंगुल ऊँचा होता है, उसके 4 अंगुल का खुर, 16 अंगुल की पिंडली, 4 अंगुल का घुटना, 20 अंगुल की जांघ, 32 अंगुल का मुख, 4 अंगुल के कान होते हैं । चक्ररत्न, छत्ररत्न, चार हाथ लम्बे, चार हाथ चौड़े होते हैं । 2 दण्डरत्न चार हाथ लम्बा होता है । 3 खड्गरल पचास अंगुल लम्बा, 16 अंगुल चौड़ा होता है । इसकी मूठ चार अंगुल की, धार आधे अंगुल की होती है । चर्मरत्न चार हाथ लम्बा और दो हाथ चौड़ा होता है। मणिरत्न चार अंगुल लम्बा और दो अंगुल चौड़ा होता है। कांकिणी रत्न 6 तल, 8 आठ कोण, 12 अंश होते हैं। इसका आकार सुनार की ऐरण जैसा होता है और वजन में यह आठ सौनेया जितना होता है । प्रवचन सारोद्धार में इनका भिन्न प्रमाण बतलाया है | 55 ये रत्न चक्रवर्ती को विजयश्री दिलाने में अपना-अपना विशिष्ट-विशिष्ट कार्य करते हैं । वह इस प्रकार है
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(1) चक्ररत्न - यह चक्रवर्ती की सेना से एक योजन आगे आकाश में चलता है। जहां चक्र - रत्न ठहरता है, वहीं चक्रवर्ती की सेना का पड़ाव होता है ।
(2) छत्ररत्न - यह चक्रवर्ती के हाथों से स्पर्श पाकर बारह योजन लम्बा-चौड़ा हो जाता है। यह धूप, हवा और वर्षा से बचाव करता है। (3) दण्डरत्न - यह एक हजार योजन की विषम जगह को सम बनाता है । शत्रु सेना का विनाश करता है । खण्ड प्रपात गुफा और तामस गुफा के किंवाड़ खोलता है।
(4) खड्गरत्न - यह शत्रु के घाव करता है, नष्ट करता है ।
(5) चर्मरत्न - 48 कोस में चबूतरा बनाता है। इस बारह योजन लम्बे-चौड़े छत्र के नीचे प्रातःकाल जिस भी धान्य के बीज बोये जाते हैं वे मध्याहन में पककर तैयार हो जाते हैं। जब चक्रवर्ती दिग्विजय के लिए नदियों को पार करता है, तब यह रत्न नौकारूप बन जाता है । ( 6 ) मणिरत्न - यह वैडूर्यमय त्रिकोण और छह अंश वाला होता है। यह