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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर 71
में धनंजय राजा की धारिणी रानी की कुक्षि से पुत्ररूप में उत्पन्न हुई। महारानी धारिणी ने अर्धरात्रि में चतुर्दश स्वप्न देखे । परिणामस्वरूप समय आने पर एक सुकुमार, सुन्दर बालक का प्रसव किया जिसका नाम प्रियमित्र रखा गया । 11
प्रियमित्र राजघराने में बड़े होने लगे। युवावय प्राप्त होने पर वे अपरिमित बलशाली, अद्भुत तेजस्वी प्रतीत होने लगे। उन्हें राज्य - भार सम्हालने में सक्षम जानकर महाराज धनंजय ने उनका राज्याभिषेक कर दिया। राजा प्रियमित्र, प्रजा का प्रिया की तरह पालन करते हुए राज्यश्री का उपभोग करने लगे। महाराजा धनंजय ने निर्वेद भाव को प्राप्त कर संयम अंगीकार किया और सर्वविरति अणगार बन गये । राज्यश्री उपभोग करते हुए एक दिन राजा प्रियमित्र की आयुधशाला में चक्ररत्न पैदा हुआ। तब सुभट ने आकर सूचना दी, "राजन! आपकी आयुधशाला में चक्ररत्न पैदा हुआ है।"
राजा प्रियमित्र बड़ा हर्षित होता है । चक्ररत्न को प्रणाम करता है । सुभट को, मुकुट छोड़कर सब आभूषण बधाई में देता है और स्वयं आयुधशाला में जाकर चक्ररत्न को प्रणाम करता है । तत्पश्चात् सभी करणीय कार्यों को करके आठ-दिवस का महोत्सव करता है ।
वस्तुतः चक्ररत्न चक्रवर्ती विजय का सन्देशवाहक है जिसके पैदा होने के बाद चक्रवर्ती सम्राट छः खण्ड विजय करने हेतु प्रस्थान करते हैं । 12 इस चक्ररत्न सहित चक्रवर्ती के चौदह रत्न यथास्थान उत्पन्न होते हैं। आयुधशाला में ही चक्ररत्न के अतिरिक्त छत्ररत्न, दण्डरत्न और असिरत्न भी पैदा होते हैं। 3 तीन रत्न- चर्मरत्न, मणिरत्न और कागिनीरत्न, ये चक्रवर्ती के भण्डार में पैदा होते हैं 144 चक्रवर्ती की राजधानी में सेनापति, गाथापति, बढ़ई और पुरोहित, ये चार पुरुषरत्न पैदा होते हैं ।" वैताढ्य पर्वत के मूल में हस्तीरत्न, अश्वरत्न पैदा होते हैं । विद्याधरों की उत्तर श्रेणि में चक्रवर्ती की प्रधान पटरानी श्रीदेवी पैदा होती है ।"
इस प्रकार चक्रवर्ती के सात रत्न एकेन्द्रिय शरीर निर्मित होने से एकेन्द्रिय रत्न और सात पंचेन्द्रिय रत्न होते हैं। ये सभी रत्न प्रमाणोपेत लम्बाई वाले होते हैं । "