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अपाश्चम ताथकर महावार 65
खेती को विनष्ट कर देता है। साथ ही, हमारे परिवारों को भी नष्ट कर रहा है। अतः आप हमारी एवं खेती की सुरक्षा का कोई प्रबन्ध कीजिए । तब राजा अश्वग्रीव किसानों की पुकार सुनकर, बारी-बारी से अपने अधीनस्थ राजाओं को, खेती एवं किसान परिवारों की सुरक्षा के लिए वहां भेजने लगा। जब अश्वग्रीव ने चण्डवेग दूत को मारने की बात सुनी तो बदला लेने की भावना से राजा प्रजापति को संदेश भिजवाया कि आप तुंगगिरि जाओ और सिंह से खेती और किसानों की रक्षा करो।
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प्रजापति आदेश श्रवण कर समझ गया कि अभी मेरी बारी नहीं है, फिर भी राजा का जो आदेश मिला है वह पुत्रों के चण्डवेग के प्रति दुर्व्यवहार के कारण ही मिला है। प्रजापति ने सेना सजाई और स्वयं जाने को उद्यत बने । तब कुमारों ने कहा- पिताश्री आप मत जाइये | एक सिंह से खेत की रक्षा तो हम भी कर सकते हैं। हम ही जायेंगे । पुत्रों के आग्रह करने पर पिता रुक गये । पुत्रों ने प्रस्थान कर दिया । पुत्र तुंग पर्वत पर पहुंच गये। पहुंचने के बाद किसानों से पूछा- दूसरा राजा कितने समय तक यहां रहता है? तब उन्होंने कहाजब तक फसल प्राप्त नहीं हो जाती तब तक चतुरंगिनी सेना सहित यहां रहना है। सिंह से रक्षा करता है। त्रिपृष्ठ वासुदेव ने सोचा, इतने समय तक यहां रहूंगा तो भी यह क्षेत्र सदा के लिए उपद्रवरहित नहीं होगा । अतः उपद्रवकारी सिंह को ही समाप्त कर देना चाहिए। ऐसा चिन्तन कर वासुदेव ने लोगों से कहा- अच्छा बताओ, वह सिंह कहां रहता है? लोगों ने, जहां शेर रहता था, वह गुफा बतला दी । वासुदेव रथारूढ़ होकर शेर की गुफा के बाहर पहुंचे और जोर से ललकारा । उस ललकार को सुनकर गंभीर गर्जना करता हुआ शेर गुफा से बाहर आने लगा । तब त्रिपृष्ठ वासुदेव ने चिन्तन किया कि मैं रथ पर हूं, और यह पैदल है । मैं शस्त्रसहित हूं और यह सिंह शस्त्ररहित है । तो मुझे भी पैदल, शस्त्ररहित युद्ध करना चाहिए । यों सोचकर नीचे उतर गया । 1 तब सिंह को जातिस्मरण ज्ञान पैदा हुआ । सोचा, अरे यह पुरुष कैसा मूर्ख है। प्रथम तो अकेला आया है, फिर रथ से उतर गया है और शस्त्र भी इसने रथ में छोड़ दिये हैं । मदांध हाथी की तरह दुर्मद इस त्रिपृष्ठ