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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर समय चण्डवेग दूत ने बिना कोई सूचना दिये अकस्मात् प्रवेश किया । राजा प्रजापति समाकुल बन गये। सारा संगीत-नृत्य स्थगित करने का आदेश दिया । चण्डवेग से वार्तालाप किया । अचल बलदेव और त्रिपृष्ठ वासुदेव को दूत का यह कृत्य अनुचित लगा। अकरणीय कार्य की सजा देनी ही चाहिए। ऐसा चिन्तन कर दोनों राजकुमारों ने अपने सेवकों से कहा- जब यह दूत पुनः यहां से चला जाये, तब हमको सूचना देना । सेवकों ने "जो आज्ञा ।" कहकर कुमारों के आदेश को स्वीकार कर लिया ।
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कुछ दिनों पश्चात् वार्तालाप करके अश्वग्रीव का दूत चण्डवेग जाने को उद्यत हुआ। राजा प्रजापति ने सत्कारपूर्वक उसे विदा किया। इधर अनुचरों ने बलदेव, वासुदेव को सब हाल बता दिया। तब दोनों राजकुमार जंगल में पहुंचे, जहां चण्डवेग था, वहां पर आये और उसे बुरी तरह पीटने लगे। उसकी पिटाई देखकर संगी-साथी भाग खड़े हुए ।
राजा प्रजापति को तुरन्त सूचना मिली कि दोनों कुमार जंगल में चण्डवेग दूत की पिटाई कर रहे हैं । तब भावी अनिष्ट की आशंका से भयाक्रान्त होकर प्रजापति ने चण्डवेग को पुनः बुलाया । अत्यधिक सत्कार, सम्मान कर, खूब पारितोषिक देकर उसे कहा - कुमारों ने जो पिटाई की है, उसे तुम महाराजा अश्वग्रीव से मत कहना । चण्डवेग ने यह बात स्वीकार कर ली । परन्तु जो साथी भाग गये थे उन्होंने चण्डवेग के पहुंचने से पहले ही सारी बात राजा अश्वग्रीव को बता दी | 30 जब वृत्तान्त का पता चल ही गया तब चण्डवेग ने भी भयातुर होकर सारी बात बता दी। राजा अश्वग्रीव अत्यन्त कोपायमान हुए और निर्णय लिया कि इन कुमारों को मरवाना है ।
राजा अश्वग्रीव ने तुंगगिरि पर शालि-धान्य की खेती करवा रखी थी। वहां चावलों की विशाल खेती होती थी । लेकिन.. उस तुंगगिरि पर रहने वाला सिंह बीच-बीच में उपद्रव करता रहता था । किसान परिवारों का विनाश भी कर देता । तब किसान, राजा अश्वग्रीव के पास विनती करने लगे- राजन! तुंगगिरि की कन्दराओं में निवास करने वाला सिंह हमारी बड़ी लगन और मेहनत से की गयी