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श्री विपुलाश्री जी म.सा. ने चूर्णि आदि प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करते हुए भगवान के तपःपूत जीवन को अपनी लेखनी से उकेरना प्रारंभ किया जिसके फलस्वरूप यह प्रस्तुत कृति आपके हाथों में है।
साधुमार्गी जैन संघ का परम सौभाग्य है कि संघ को आगमिक गहन विद्वत्ता के धनी परम पूज्य आचार्य-प्रवर श्री रामलालजी म.सा का कुशल नेतृत्व प्राप्त है। आचार्यश्री की सूक्ष्म शास्त्रीय विवेचनाओं ने साधु-साध्वी समाज में ज्ञान की अपार वृद्धि की है। उन्हीं में से एक विदुषी महासती श्री विपुलाश्री जी म.सा. का वैदुष्य एवं कौशल इस ग्रंथ के सहज सुगम्य है। विदुषी महासती श्री विपुलाश्री जी ने अपनी सांसारिक अवस्था में संस्कृत में एम.ए. प्रथम श्रेणी से उत्तीर्णता प्राप्त की थी। दीक्षा पश्चात् स्व. आचार्य श्री नानेश के चरणों में आगमों का तलस्पर्शी ज्ञान तथा उद्बोधन प्राप्त किया था। इस हेतु हम श्रमणीरत्ना विपुलाश्री जी म.सा. के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते है।
प्रस्तुत ग्रंथ को प्रकाशित कराने में पूर्ण सावधानी बरती गयी है फिर भी कोई त्रुटि रह गई हो तो हम क्षमाप्रार्थी है।
शान्तिलाल सांड संयोजक, साहित्य प्रकाशन समिति श्री अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी जैन संघ,
बीकानेर (राज.)