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प्रकाशकीय भारतीय संस्कृति की प्राणी करुणा से ओत-प्रोत जीवनधारा की अमल, अमर प्रवाह यात्रा का प्रतिनिधित्व करने वाली श्रमण संस्कृति में साधुमार्ग का विशिष्ट महत्व है। साधुमार्गी परम्परा ने गुण पूजा के पवित्र भावों से समाज को प्रभावित करते हुए उत्कृष्ट पथ का दिशा निर्देश किया है। जीवन व्यवहारों को आत्मसंयम से निर्देशित कर व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की उन्नति हेतु मानव मात्र को दिशा बोध प्रदान करने वाली श्रमण संस्कृति की प्रतिनिधि धारा साधुमार्ग में ज्योतिर्धर, क्रांतदर्शी, शांत-क्रान्ति और समताधारी के सूत्रधार, आचार्यों के ज्योतिरत्न मालिका में वर्तमान शासन नायक, जिनशासन प्रद्योतक, सिरीवाल प्रतिबोधक, “आचार्य प्रवर 1008 श्री रामलालजी महाराज सा. अद्भुत प्रतिभा और मेधा के धनी तथा आदर्श संगठन कौशल के साकार रूप है।
___ अपनी अनन्य शास्त्रीय निष्ठा और आगमिक ग्रंथों के तलस्पर्शी ज्ञान के साथ ही आचार्य श्री रामेश क्रिया के क्षेत्र में अपने स्वयं के आचरण और अपनी शिष्य मंडली के शुद्धाचार हेतु अहर्निश सजग रहते है। शास्त्र के दिशा निर्देश को अपनी जीवन साधना के बल पर अपने उज्ज्वल चारित्र और दृढ़ आचार के द्वारा परम पूज्य आचार्य प्रवर ने जन-जन के समक्ष प्रत्यक्ष किया है। आचार्य श्री रामेश ने अपनी विहार यात्रा में इस पवित्र भूमि के ग्राम-ग्राम, नगर-नगर, डगर-डगर पॉव पैदल चलते हुए इस देश के सभी धर्म, पंथ एवं जाति के निवासियों को अमृतमय उपदेशों से लाभान्वित किया है। जन-जन के साथ निरंतर संवाद करते हुए उनके सुख-दुख में उन्हें धैर्य बंधाते सहस-सहसजनों की अनन्त जिज्ञासाओं का अविचल प्रज्ञा से समाधान करते हुए आचार्य श्री रामेश अपनी मर्यादा के साथ विचरण कर रहे है।
कुछ वर्षों पूर्व भगवान महावीर के सिद्धांतों एवं जीवनशैली पर कुछ अनभिज्ञों द्वारा अन्यथा लेखन किया गया। साधुमार्गी संघ के सुश्रावक श्रीमान पीरदानजी पारख तथा श्री हरिसिंहजी रांका ने तद्विषयक जिज्ञासा प्रस्तुत की। इसकी शोध करते हुए विदुपी महासती