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अपश्चिम तीर्थंकर महावीर – 182 पूर्ण नहीं हुई।
गोबर गांव के समीप ही खेटक नामक एक ग्राम भी था। उस ग्राम को चोरों ने नष्ट-भ्रष्ट कर दिया और बहुत-से ग्रामवासियों को बन्दी बना लिया। उसी ग्राम में वेशका नामक एक स्त्री थी जिसने अभी-अभी एक पुत्ररत्न को जन्म दिया। उसके पति को चोरों ने मार दिया था। अत्यन्त रूपवान उस स्त्री को देखकर चोरों ने उसे अपने साथ ले लिया । वह स्त्री हाथ में नवजात शिशु को लेकर चोरों के साथ चलने लगी। बालक हाथ में होने से धीरे-धीरे चलने के कारण चोरों से पीछे रह गयी। तब चोरों ने कहा-अरे! यदि तूं जीवित रहना चाहती है तो इस बालक को छोड़ दे अन्यथा तुम्हें भी अभी मार डालेंगे। मृत्यु का भय जबरदस्त होता है। मृत्युभय से अपने प्राण-प्यारे बालक को एक वृक्ष नीचे उस स्त्री ने छोड़ दिया और चोरों के साथ चलने लगी।
वह स्त्री चोरों के साथ चली गयी। वृक्ष के नीचे वह बाल-शिशु सोया है। धरती माता की गोद में सोया किलकारियां कर रहा है। उसका रक्षण प्रकृति कर रही है। प्रातःकाल हुआ और गोशंखी गायें चराने हेतु उधर ही निकला। वृक्ष के नीचे बालक को सोया हुआ देखा। इधर-उधर दृष्टि फैलायी लेकिन कोई दिखाई नहीं दिया तब गोशंखी ने चिन्तन किया कि यह बालक मुझे स्वतः ही मिल गया है। इसका रूप-लावण्य बड़ा आकर्षक है। इसे मैं घर ले जाता हूं और पुत्र-रूप में इसका पालन करूंगा। यह सोचकर गोशंखी उस बाल-शिशु को अपनी उत्संग में ग्रहण कर हर्षविभोर हो ले जाता है। घर पहुंच कर गोशंखी ने अपनी पत्नी से कहा- देखो आज प्रकृति ने तुम्हारी सूनी गोद भर दी है। पत्नी ने मातृत्वभाव की वात्सल्यभरी निगाहों से बालक को देखा और बोली कि लोक में इसे अपने बालक के रूप में ख्यापित करें तभी मेरा वंध्यापन नष्ट होगा। तब गोशंखी ने कहा- इसमें क्या है? अभी वैसा ही करते हैं, ऐसा कहकर मोहान्ध बनकर एक भेड़ का वध किया, उसका रुधिर बालक के शरीर पर लगाया, पत्नी को सूतिका का वेश पहनाकर कमरे में सुलाया, बालक को उसके पास रखा और गांव में चर्चा करी कि मेरी पत्नी के गुप्त गर्भ था । आज एक शिशु का जन्म हुआ। इस प्रकार चहुं ओर वार्ता फैली। 'बधाई हो बधाई